भक्ति में श्रद्धा और आस्था ही सर्वोपरि होती है। लेकिन मर्यादा और नियमों के साथ की गई देव उपासना दोष रहित और शुभ फल देने वाली भी मानी गई है। क्योंकि मर्यादा का पालन दोषों को दूर रख लक्ष्य प्राप्ति से भटकने नहीं देता। चाहे फिर वह भक्ति हो या जीवन की जरूरतों से जुड़ा कोई मकसद।
बहरहाल, देव उपासना के सिलसिले में शास्त्रों में अलग-अलग देवताओं के मन्दिर और स्थापना के लिए नियत दिशाएं बताई गई है। जिसका पालन कर देव उपासना बहुत शुभ और अमंगल से रक्षा करने वाली मानी गई है।
जानते हैं शास्त्रों में घर में किस देवता को किस दिशा में स्थापित कर पूजा का नियम है-
– शास्त्रों में लिखा है कि ऐशान्यां देव मन्दिरं यानी घर में देवालय या देव मन्दिर ईशान कोण में होना चाहिए और देवताओं की स्थापना इस तरह होनी चाहिए कि उनके मुख मण्डल पश्चिम दिशा में रहें।
– अगर आपके इष्टदेवता श्री गणेश हैं तो इस स्थिति में अन्य देवताओं की नीचे बताए तरीके से स्थापना करें –
– बीच में भगवान गणेश।
– उनसे ईशान यानी उत्तर-पूर्व दिशा में भगवान विष्णु।
– दक्षिण पूर्व यानी आग्रेय दिशा में भगवान शंकर।
– दक्षिण-पश्चिम यानी नैऋत्य दिशा में सूर्यदेव।
– उत्तर-पश्चिम यानी वायव्य दिशा में देवी की स्थापना करें।
घर के देवालय में किस दिशा में बैठाना चाहिए कौन-से देवी-देवता? – ghar ke devaalay mein kis disha mein batana chahiye kaun-se devee-devata? – वास्तु और कक्ष दशा – vastu aur kaksha dasham