आज किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है, क्योंकि लोगों में अपने घर या कार्यालय को वास्तु के अनुसार बनाने की सोच बढ़ रही है। यही वजह है कि पिछले करीब एक दशक से वास्तुशास्त्री की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है।आज के जमाने में वास्तु शास्त्र के आधार पर स्वयं भवन का निर्माण करना बेशक आसान व सरल लगता हो, लेकिन पूर्व निर्मित भवन में बिना किसी तोड फोड किए वास्तु सिद्धान्तों को लागू करना जहाँ बेहद मुश्किल हैं, वहाँ वह प्रयोगात्मक भी नहीं लगता. अब व्यक्ति सोचता है कि अगर भवन में किसी प्रकार का वास्तु दोष है, लेकिन उस निर्माण को तोडना आर्थिक अथवा अन्य किसी दृ्ष्टिकोण से संभव भी नहीं है, तो उस समय कौन से ऎसे उपाय किए जाएं कि उसे वास्तुदोष जनित कष्टों से मुक्ति मिल सके.
इसको आधुनिक मस्तिष्क वैज्ञानिकों नें भी माना है कि मस्तिष्कीय क्रिया क्षमता का मूलभूत स्त्रोत अल्फा तरंगों का पृ्थ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन का संबंध आकाशीय पिंडों से है और यही वजह है कि वास्तु कला शास्त्र हो या ज्योतिष शास्त्र, सभी अपने अपने ढंग से सूर्य से मानवीय सूत्र सम्बंधों की व्याख्या प्रतिपादित करते हैं. अत: वास्तु के नियमों को, भारतीय भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर, भूपंचात्मक तत्वों के ज्ञान से प्रतिपादित किया गया है. इसके नियमों में विज्ञान के समस्त पहलुओं का ध्यान रखा गया है, जिनसे सूर्य उर्जा, वायु, चन्द्रमा एवं अन्य ग्रहों का पृ्थ्वी पर प्रभाव प्रमुख है तथा उर्जा का सदुपयोग, वायु मंडल में व्याप्त सूक्ष्म से सूक्ष्म शक्तियों का आंकलन कर, उन्हे इस वास्तु शास्त्र के नियमों में निहित किया गया है.
वास्तु दोषों के निराकरण हेतु तोड़-फोड़ से भवन के स्वामी को आर्थिक हानि तो होती ही है, साथ ही कीमती समय भी जाया होता है। इस तरह का निराकरण गृह स्वामी को कष्ट देने वाला होता है तथा व्यक्ति मानसिक रूप से टूट जाता है।
यदि स्विमिंग पूल छत की उत्तर-पूर्व, उत्तर दिशा में है, तो मैं इसे अनुचित नहीं मानता। जब मल्टिस्टोरीज इमारतों में छत पर पानी की टंकी का निर्माण उचित है, तो वहां स्विमिंग पूल अशुभ कैसे हो सकता है! पर ध्यान रहे, पानी का निकास व ढलान उत्तर-पूर्व की ही तरफ हो। दक्षिण-पश्चिम की छत का थोड़ा ऊंचा होना अनिवार्य है।
संभव हो, तो पूरी छत को स्विमिंग पूल न बनाकर सिर्फ नॉर्थ-ईस्ट के हिस्से का ही इस्तेमाल करें। दुविधा त्याग दें, क्योंकि प्राचीन वास्तु में भी तरणताल, तालाब, जल कुंड, जलाशय इत्यादि के विस्तृत विवरण व नियम स्पष्ट रूप से मिलते हैं।
पानी का संग्रह करने के लिए टैंक का निर्माण मकान की छत पर दक्षिण – पश्चिम क्षेत्र में या उत्तर – पश्चिम
क्षेत्र में कर सकते हैं | उत्तर-पूर्व व् पूर्व – दक्षिण क्षेत्र में ओवर हैड टैंक बनवाना नहीं चाहिए | ये शुभ नहीं रहता है |
विशेष परिस्थितियों में अगर अग्नि कोण या ईशान कोण में ओवर हैड टैंक बनवाना हो तो दूसरे अन्य कोनों की ऊँचाई व् भार को अधिक करना होगा | क्योंकि ईशान कोण अधिक भारी नहीं होना चाहिए | ये शुभ नहीं रहता है |
—– घर में ओवरहैड टैंक का स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है इसलिए जरूरी है कि इसे वास्तु के अनुसार बनाया जाए। पानी की टंकी हमेशा पश्चिमी या दक्षिण पश्चिम दिशा में होनी चाहिए।
—– यदि ओवरहैड टैंक दक्षिण पश्चिम दिशा में बनाया गया है तो उसे दो फीट ऊँचे स्लैब या चबूतरे पर बनाना चाहिए।
—— वैसे उत्तर पूर्व की दिशा पानी से संबंधित है लेकिन फिर भी इस भाग में ओवरहैड टैंक नहीं बनाना चाहिए क्योंकि इस दिशा को वास्तु के अनुसार किसी भी तरह भारी नहीं होना चाहिए। हालाँकि यहाँ एक छोटी पानी की टंकी रखी जा सकती है।
——- दक्षिण पश्चिम दिशा में बनाया गया ओवरहैड टैंक अशुभ परिणाम देता है। इससे लक्ष्मी की हानि और दुर्घटनाओं की संभावना बनती है। ओवरहैड टैंक का लीक करना भी अशुभफल देता है।
—–वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्माजी ने वास्तुशास्त्र के नियमों की रचना की थी। इनकी अनदेखी करने पर उपयोगकर्ता की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि होना निश्चित रहता है। वास्तुदेवता की संतुष्टि गणेशजी की आराधना के बिना अकल्पनीय है। गणपतिजी का वंदन कर वास्तुदोषों को शांत किए जाने में किसी प्रकार का संदेह नहीं है। नियमित गणेशजी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है।
आशा है इस जानकारी को पढ़कर आप इससे अपने वास्तु दोषों का निवारण कर सकेंगे और अपने जीवन को सुखमय एवं शांतिमय से गुजार सकेंगे।