पूर्व दिशा का स्वामी सूर्य इस दिशा में भवन शास्त्र के अनुसार उचित प्रकार से बना हो, इस दिशा का विकिरण घर में आता हो, कोई दोष नहीं हो तो उस घर में निवास करने वाले व्यक्तियों को उत्तम स्वास्थ्य, धन-धान्य की प्राप्ति होती है। निर्माण दोषपूर्ण होने पर व्यक्ति इनसे वंचित रहता है। रोगी होने की आशंका अधिक रहती है।
अग्निकोण का स्वामी शुक्र ग्रह है, यह ग्रह भौतिक सुख व भौतिक उन्नति देता है। यह दिशा शास्त्रानुसार होने पर धन, प्रसिद्धि, भौतिक सुख, इच्छाओं की पूर्ति सुगमता से होती है। घर के इस भाग में गंदगी, कचरा-कूड़ा, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए। इसे लक्ष्मी का स्थान भी कहा गया है।
घर के दक्षिण की दिशा मंगल की है, इसका सबसे अधिक प्रभाव गृहस्वामी पर होता है, उसकी स्वास्थ्य व प्रगति मुख्यतः इसी दिशा पर आधारित है।
नैऋत्य दिशा राहु की है। यह दोषपूर्ण होने पर कलह कराती है तथा पितृ का स्थान होने से वंशवृद्धि को प्रभावित करती है।
पश्चिम दिशा का स्वामी शनि है। इसका प्रभाव बंधु, पुत्र, धान्य तथा उत्कृष्ट उन्नति पर अधिक होता है। पश्चिमोत्तर दिशा का स्वामी चंद्रमा है। चंद्रमा चंचलता का, मन का, गति का प्रतीक है। यह दिशा नौकर, वाहन, गमन तथा पुत्र को प्रभावित करती है।
पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी बृहस्पति है। घर का यह भाग साफ-सुथरा तथा अनुकूल होने पर सभी कामनाओं की पूर्ति करते हुए आनंद देता है
दिशा का स्वामी ग्रह – disha ka swami grah – वास्तुशास्त्र – vastu shastra