reincarnation is possible

मुमकिन है पुनर्जन्म – पुनर्जन्म का रहस्य | Reincarnation is possible – punarjanm ka rahasya

 

आज ही नहीं, शुरू से ही इंसान के मन में ‘पुनर्जन्म’ को लेकर काफी उत्सुकता रही है। इसे लेकर दुनिया भर में अनेक किस्से-कहानियां प्रचलित हैं, जिनमें प्रेम, हत्या, पूर्व जन्म का बदला लेने जैसी घटनाओं की चर्चा होती है। कुछ धार्मिक ग्रंथों में भी इसे मान्यता दी गई है। पुनर्जन्म की कथाओं को आधार बना कर बहुत सी हिट फिल्में बनी हैं। पर विज्ञान ऐसी कहानियों को कल्पना की उड़ान मानता है। कुछ समय पहले एक टीवी चैनल पर काफी दिनों तक पुनर्जन्म पर आधारित एक सीरियल प्रसारित होता था। उसमें दिखाया जाता था कि एक विशेषज्ञ किसी व्यक्ति को किस तरह उसके पिछले जन्म में ले जाता है। इसके साथ ही फ्लैश बैक में फिल्म बना कर दिखाया जाता था कि अपने उस जन्म में किस तरह वह व्यक्ति अपने रिश्तेदार के साथ मिलजुल कर रहा है।

धारावाहिक में ऐसा माहौल बनाया जाता था मानो वह व्यक्ति अपने पिछले जन्म में इस शरीर के साथ पहुंच चुका है तथा अब वह अपने सारे राज बता रहा है। उसके आधार पर यह साबित करने की कोशिश की जाती थी कि इस जन्म में उसे जो भी डर या बीमारी है, वह सब पिछले जन्म में घटी किसी घटना के ही कारण है। यदि वह पानी से डरता है तो पिछले जन्म के कारण, यदि वह परीक्षा में पास नहीं होता तो वह भी पिछले जन्म में पढ़ाई में कमजोर होने के कारण। मानो इस जन्म के दुख-दर्द सब पिछले जन्म के कारण है तथा यह राज बताने से वह ठीक हो जाएगा।

सीरियल का एंकर अंत में उस प्रतिभागी को एक कवच देता था और कहता था कि यह चमत्कारिक कवच उसकी बुरी शक्तियों से रक्षा करेगा। बिलासपुर की एक महिला ने एक प्रादेशिक चैनल में यह दावा किया कि वह भी पिछले कुछ वर्षों से लोगों के पूर्व जन्म का राज बताती है व उनका इलाज करती है तथा उनकी समस्याओं से मुक्ति दिलाती है। अभी मुझे पता चला कि रायपुर, मुंबई जैसे अनेक शहरों में ऐसे अनेक विशेषज्ञ पैदा हो गए हैं और कई संस्थान खुल गए हैं जो लोगों को पूर्वजन्म की याद के आधार पर इलाज करने और उनकी समस्याओं का समाधान करने का दावा करते हैं।

विज्ञान कहता है कि मृत्यु के बाद व्यक्त के मस्तिष्क की हजारों-लाखों कोशिकाओं में संचित सारी स्मृतियां भी समाप्त हो जाती हैं, उनका कोई नामोनिशान नहीं रह जाता। कभी-कभी तो जब व्यक्ति ब्रेन हेमरेज, सिर की चोट, ब्रेन ट्यूमर, मनोरोग से भी पीड़ित हो जाता है, तब भी उसकी याददाश्त चली जाती है। मृत्यु के बाद जब उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है तब शरीर के बाकी अंगों की तरह उसका मस्तिष्क भी विघटित हो जाता है। ऐसे में उसकी संचित यादें किस प्रकार किसी दूसरे जन्म में किसी अन्य व्यक्ति में फिर से पहुंच सकती हैं? जब कोई शिशु कहीं जन्म लेता है तो उसका दिमाग एक कोरी स्लेट की तरह होता है। उसके पालक उसे जो छोटी से छोटी बातें सिखाते हैं, वही उसकी स्मृति में संचित रहते हैं। वह बात करने, लिखने- पढ़ने, कपड़े पहनने और खाने- पीने से लेकर कामकाज तक समाज में रहकर विभिन्न व्यक्तियों से सीखता है।

बचपन से लेकर अंत तक उसका मस्तिष्क करोड़ों सूचनाएं संचित करता है जिसमें से कुछ स्वयं के अनुभव पर आधारित होती हैं तो कुछ पढ़ने-लिखने, देखने, सुनने से संचित की हुई होती है। इसमें किसी की स्मृति पहले की या पिछले जन्म की नहीं होती। हर बच्चा छोटे से बड़ा होता है और अपनी स्मृतियां स्वयं निर्मित करता है। ऐसा नहीं होता कि कोई व्यक्ति/बच्चा जन्म से ही पूर्ण शिक्षित हो, अनुभवी हो या तकनीकी विशेषता रखता हो। यदि लोगों में पूर्वजन्म की यादें होतीं, स्मृतियां होतीं, तो हमें अपने आसपास ऐसे हजारों बच्चे देखने को मिलते जो पूर्व जन्म के अनुभव और ज्ञान के कारण पहले से ही शिक्षित और तकनीकी विशेषज्ञता रखते हों। पर ऐसा संभव नहीं है।

स्टीफन हॉकिंग का कहना है कि हमारा जीवन भी एक कंप्यूटर के समान है। उसके अलग-अलग हिस्सों के असफल होने की वजह से यह कंप्यूटर काम करना बंद कर देता है और हमारी मृत्यु हो जाती है। जिस तरह कंप्यूटर के खत्म होने के बाद कोई स्वर्ग, नरक या पूर्वजन्म जैसी कोई बात नहीं होती, उसी तरह मनुष्य की मृत्यु के बाद भी ऐसी बातें नहीं हो सकतीं। यदि मनुष्य का पुनर्जन्म होता तो दूसरे जीवित प्राणियों का भी होता। उनकी योनियां बदलतीं। संसार में कीड़े, मकोड़ों, पशु-पक्षियों, जानवरो की लाखों जातियां हैं, क्या उनका भी पुनर्जन्म होता है? क्या कोई मनुष्य अपने पिछले जन्म में जाकर यह बताता है कि वह भुनगा, कौवा या लोमड़ी था, जिसकी वजह से इस जन्म में भी उसकी आवाज या वृत्ति वैसी ही है?

रैशनलिस्ट लोगों की एक शाखा शरीर को अनेक प्रकार के अणुओं (मॉलिक्यूल्स) से भरी हुए कोशिकाओं का समूह मानती है। इसका मानना है कि ये अणु ही विभिन्न प्रकार की क्रिया-प्रतिक्रिया करते हैं, जिनसे जीवन पैदा होता है। हमें जीवन में जो कुछ भी आश्चर्य जनक दिखता है वह इन्हीं रासायनिक प्रतिक्रियाओं की वजह से घटित होता है। जब ये प्रतिक्रियाएं रुक जाती हैं तो कोशिकाओं के समूह भी मर जाते हैं और यह जीवन समाप्त हो जाता है।

अमेरिका की एक संस्था है काउसिंल फॉर सेक्युलर ह्यूमनिज्म’। इसके एक वैज्ञानिक ऑस्टिन क्लाइन लंबे समय से इस विषय पर काम कर रहे हैं। उनका तर्क है कि जो कुछ मैं हूं वह मेरी याददाश्त एवं व्यक्तित्व पर निर्भर है। यह दोनों मेरे मस्तिष्क पर निर्भर है। जब मेरा मस्तिष्क मर गया तो मेरी याददाश्त एवं व्यक्तित्व दोनों खत्म। अगर वह खत्म तो व्यक्ति के रुप में मैं कौन हूं इसका भी अंत हो गया। अगर हमारी शारीरिक मृत्यु के बाद भी कुछ जीवित रहता है तो वह मैं तो नहीं होऊंगा।

पुनर्जन्म की व्याख्या करने वाले दावा करते हैं कि वे ‘पास्ट लाइफ रिग्रेशन थिरेपी’ के आधार पर इलाज करते हैं। पर इस चिकित्सा पद्धति का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। आधुनिक मेडिकल साइंस इसे स्वीकार नहीं करता। पुनर्जन्म के रूप में प्रचारित मामलों का जब वैज्ञानिकों ने बारीकी से अध्ययन किया तब वे सभी फर्जी व बनावटी निकले जिसमें उनके परिजनों का भी हाथ साबित हुआ। यदि पुनर्जन्म होता तो क्या किसी प्राणी का क्लोन बनाना संभव होता? वैज्ञानिकों ने क्लोन बनाकर तो मृत प्राणी की आत्मा के दूसरे शरीर में जाने के बात को बिल्कुल ही गलत साबित कर दिया, क्योंकि एक ही समय में कोई व्यक्ति और उसका क्लोन -दोनों एक साथ जीवित रह सकते हैं।

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