auspicious yoga

शुभ योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Auspicious yoga – vaidik jyotish Shastra

 

किसी कुंडली में किसी भी शुभ योग के बनने के लिए यह आवश्यक है कि उस योग का निर्माण करने वाले सभी ग्रह कुंडली में शुभ रूप से काम कर रहे हों क्योंकि अशुभ ग्रह शुभ योगों का निर्माण नहीं करते अपितु अशुभ योगों अथवा दोषों का निर्माण करते हैं। इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि किसी कुंडली में बुध आदित्य योग के बनने के लिए कुंडली में सूर्य तथा बुध, दोनों का शुभ होना आवश्यक है तथा इन दोनों में से किसी एक ग्रह के अथवा दोनों के ही कुंडली में अशुभ होने से उस कुंडली में बुधादित्य योग का निर्माण नहीं होता बल्कि किसी प्रकार के दोष का निर्माण हो सकता है। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में सूर्य के अशुभ होने पर, बुध के शुभ होने पर तथा सूर्य बुध के संयुक्त होने पर कुंडली में बुधादित्य योग का निर्माण नहीं होगा बल्कि इस स्थिति में अशुभ सूर्य के कारण शुभ बुध को हानि पहुंचेगी जिसके कारण बुध की विशेषताओं से जुड़े हुए क्षेत्रों में जातक को हानि उठानी पड़ सकती है तथा कुंडली में बुध के अशुभ और सूर्य के शुभ होकर संयुक्त होने की स्थिति में भी इस दोष का निर्माण नहीं होगा बल्कि जातक को सूर्य की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ेगी। किसी कुंडली में सबसे बुरी स्थिति तब पैदा हो सकती है जब कुंडली में सूर्य तथा बुध दोनों ही अशुभ होकर संयुक्त हों क्योंकि इस स्थिति में जातक को दोनों ही ग्रहों की विशेषताओं से संबंधित क्षेत्रों में हानि उठानी पड़ सकती है। इसलिए किसी कुंडली में बुधादित्य योग के निर्माण के लिए सूर्य तथा बुध दोनों का ही शुभ होना आवश्यक है।

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