गणित ज्योतिष के तीन भेद
1. तंत्र गणित
2. करण गणित
3. सिद्धान्त गणित
जिस गणित के द्वारा कल्प से लेकर आधुनैक काल तक के किसी भी इष्ट दिन के खगोलीय स्थितिवश गत वर्ष मास दिन आदि सौर सावन चान्द्रभान को ज्ञात कर सौर सावन अहर्गण बनाकर मध्यमादि ग्रह स्पष्टान्त कर्म किये जाते है,उसे सिद्धान्त गणित कहा जाता है।
1.तंत्र गणित
जिस तंत्र द्वारा वर्तमान युगादि वर्षों को जानकर अभीष्ट दिन तक अहर्गण या दिन समूहों के ज्ञान के मध्यमादि ग्रह गत्यादि चमत्कार देखा जाता है,उसे तंत्र गणित कहा जाता है
2. करण गणित
वर्तमान शक के बीच में अभीष्ट दिनों को जानकर अर्थात किसी दिन वेध यंत्रों के द्वारा ग्रह स्थिति देख कर और स्थूल रूप से यह ग्रह स्थिति गणित से कब होगी,ऐसा विचार कर तथा ग्रहों के स्पष्ट वश सूर्य ग्रहण आदि का विचार जिस गणित से होता है,उसे करण गणित कहते हैं।
तंत्र तथा करण ग्रन्थों का निर्माण वेदों से हजारों वर्षों के उपरान्त हुआ,अत: इस पर विचार न करके वेदों में सिद्धान्त गणित सम्बन्धी बीजों का अन्वेषण आवश्यक होगा।
वेदों में सूर्य के आकर्षण बल पर आकाश में नक्षत्रों की स्थिति का वर्णण मिलता है।
“तिस्त्रो द्याव: सवितर्द्वा उपस्थां एका यमस्य भुवने विराषाट,अणिं न रथ्यममृताधि तस्थुरिह ब्रवीतु य उ तच्चिकेतत॥
(सूर्य ही दिन और रात का कारण होता है)
आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेश्यन्नमृतं मर्त्य च हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन.
(सूर्य के आकर्षण पर ही पृथ्वी अपने अक्ष पर स्थिर है)
भारतीय आचार्यों का आकर्षण सिद्धान्त का सम्यक ज्ञान था:-
सविता: यन्त्रै: पृथ्वीमरम्णाद्सक्म्भने सविता द्यामदृहत अश्वमिवाधुक्षदधुनिमन्तरिक्षमतूर्ते वद्धं सविता अमुद्रम”
चन्द्रमा के विषय मे भी वेदों में पर्याप्त जानकारी मिलती है। चन्द्रमा स्वत: प्रकाशवान नही है। इस सिद्धान्त की पुष्टि वेद मंत्रों में ही है जैसे:-
अत्राह गोर्मन्वतनाम त्वष्टुरपीच्यम इत्था चन्द्रमसो ग्रहे
चन्द्रमा आकाश मे गतिशील है,यह नित्यप्रति दौडता है,चन्द्रिका के साथ जो निम्न मंत्र से व्यक्त हो रहा है:-
चन्द्रमा अप्स्वन्तरा सुपर्णो धावते दिवि,न वो हिरण्यनेमय: पदं विदन्ति विद्युतो वित्तं मे अस्य रोदसी
चन्द्रमा का नाम पंचदश भी है,जो पन्द्रह दिन में क्षीण और पन्द्रह दिन में पूर्ण होता है,जो निम्न मंत्र में व्यक्त हो रहा है:-
चन्द्रमा वै पंचदश: एष हि पंचद्श्यामपक्षीयते,पंचदश्यामापूर्यते॥
वेदों में महिनों की चर्चा भी है,अधिमास के संदर्भ में ऋकसंहिता की ऋचा विचारणीय है:-
वेदमासो धृतव्रतो द्वादश प्रयावत:॥ वेदा य उपजायते।
तैत्तरीय संहिता में ऋतुओं एवं मासों के नाम बताये गये है,जैसे :-
बसंत ऋतु के दो मास- मधु माधव,
ग्रीष्म ऋतु के शुक्र-शुचि,
वर्षा के नभ और नभस्य,
शरद के इष ऊर्ज,
हेमन्त के सह सहस्य और
शिशिर ऋतु के दो माह तपस और तपस्य बताये गये हैं।
बाजसनेही संहिता में पूर्वोक्त बारह महिनों के अतिरिक्त १३ वें मास का नाम अहंस्पति बताया गया है:-
मधवे स्वाहा माधवाय स्वाहा शुक्राय स्वाहा शुचये स्वाहा नभसे स्वाहा नभस्याय स्वाहेस्वाय स्वाहोर्जाय स्वाहा सहसे स्वाहा तपसे स्वाहा तपस्याय स्वाहांहस्पतये स्वाहा॥
तैत्तरीय ब्राह्मण में १३ मासों के नाम इस प्रकार हैं:-
अरुणोरुण्जा: पुण्डरीको विश्वजितभिजित। आर्द्र: पिन्वमानोन्नवान रसवाजिरावान। सर्वौषध: संभरो महस्वान॥
• अरुण
• अरुणरज
• पुण्डरीक
• विश्वजित
• अभिजित
• आर्द्र
• पिन्वमान
• उन्नवान
• रसवान
• इरावान
• सर्वौषध
• संभर
• सहस्वान