brain according to vedic astrology

वैदिक ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Brain according to vedic astrology – vaidik jyotish Shastra

 

ईश्वर नें इस ब्राह्मंड को पूर्णतय: स्वचालित बनाया है। इसमे विधमान समस्त ग्रह अपने निश्चित मार्ग पर निश्चित गति से निरंतर भ्रमणशील रहते हैं। और भ्रमण के दौरान ये किसी व्यक्ति की जन्मकुडंली के जिस भाव में स्थित होते हैं. उसी से सम्बद्ध उस व्यक्ति के मस्तिष्क के भाग को प्रभावित करते हैं।

► आज के वैज्ञानिक, डाक्टर, शरीर रचना विशेषज्ञ, मनोरोग चिकित्सक इत्यादि भी एक स्वर में स्वीकारने लगे हैं कि मानव मस्तिष्क में सोचने, सीखने, याद रखने, अनुभव करने, प्रतिक्रिया देने आदि अनेक मानसिक शक्तियों तथा प्रक्रियायों के अलग अलग केन्द्र हैं। यूं तो मानव मस्तिष्क में सहस्त्रों भाग हैं, जिनमे असंख्य सूक्ष्म नाडियां होती है। किन्तु वैदिक ज्योतिष अनुसार मस्तिष्क को ४२ भागों में विभाजित किया गया है।

► मस्तिष्क को 42 भाग
जिसके प्रथम भाग में कामेच्छा, द्वितीय में विवाह इच्छा, तृ्तीय में वात्सल्य एवं प्रेमानुराग, चतुर्थ में मैत्री एवं विध्वंस, पंचम में स्थान प्रेम(अपनी जन्मभूमी एवं देश प्रेम), छठे भाग में लगनपूर्ण समर्पण, सातवें में अभिलाषा, आठवे भाग में दृ्डता(विचारों की मजबूती),नवम भाग में प्रतिशोध की भावना, दसवें भाग में स्वाद की अनुभूती, ग्याहरवें भाग में धन संचय एवं सम्पत्ति निर्माण की प्रवृ्ति, बाहरवें भाग में गोपनीयता, तेहरवें भाग में दूरदर्शिता, चौदवें भाग में अभिमान, पंद्रहवें में स्वाभिमान, सौहलवें भाग में धैर्य, सत्रहवें भाग में न्यायप्रियता, अठाहरवें भाग में आशा एवं विश्वास, उन्नीसवें में धार्मिकता तथा आत्मशक्तिबल, बीसवें भाग में मान सम्मान एवं गरिमा, इक्कीसवें भाग में दया तथा सहानुभूति की प्रवृ्ति रहती है। बाईसवें भाग में मेघाशक्ति,तेईसवें में सौन्दर्य प्रेम,चौबीसवें में उत्साह एवं साहस, पच्चीसवें में अनुकरण करने की शक्ति(बहुरूपिये जैसा आचरण्),छच्चीसवें में विनोदप्रियता,सत्ताईसवें भाग में मानसिक एकाग्रता,अठाईसवें में स्मरणशक्ति,उन्तीसवें भाग में व्यवहारिकता,तीसवें भाग में संतुलन शक्ति,इकतीसवें में भला बुरा,मित्र-शत्रु में भेद करने की शक्ति,बत्तीसवें में कपट आचरण की प्रवृ्ति,तैंतीसवें भाग में आकलन शक्ति,चौतीसवें भाग में द्रोह करने की प्रवृ्ति,पैंतीसवें भाग में घटनाओं में रूचि रखने की प्रवृ्ति,छतीसवें में कालगति का ज्ञान रखना,सैंतीसवें में राग-विराग,अडतीसवें में भाषा,ज्ञान की प्रवृ्ति,उन्तालीसवें में अन्वेषण(खोजबीन) करने की प्रवृ्ति,चालीसवें भाग में तुलनात्मक शक्ति,इकतालीसवें भाग में मानवता की प्रवृ्ति तथा बयालीसवें भाग में नेकी/परोपकार करने की प्रवृ्ति विधमान रहती है।

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