वैदिक ज्योतिष के अनुसार पर्वत योग को एक शुभ योग माना जाता है तथा ऐसा माना जाता है कि किसी कुंडली में इस योग के बनने से जातक को धन, संपत्ति, प्रतिषठा तथा सम्मान आदि की प्राप्ति होती है। पर्वत योग के किसी कुंडली में निर्माण संबंधी नियमों को लेकर एक से अधिक धारणाएं देखने को मिलतीं है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर में यदि कम से कम एक ग्रह स्थित हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है जो जातक को उपर बताए गए शुभ फल प्रदान कर सकता है। वहीं पर कुछ अन्य वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि यदि किसी कुंडली में केन्द्र के प्रत्येक घर अर्थात 1, 4, 7 तथा 10वें घर में कम से कम एक ग्रह स्थित हो तथा कुंडली के 6 तथा 8वें घर में कोई भी ग्रह स्थित न हो तो कुंडली में पर्वत योग बनता है। ज्योतिषियों का यह वर्ग मानता है कि कुंडली के छठे अथवा आठवें घर में किसी ग्रह के स्थित हो जाने से कुंडली में बनने वाला पर्वत योग भंग हो जाता है। इसी वर्ग में से कुछ ज्योतिषी यह मानते हैं कि यदि कुंडली के 6 तथा 8वें घर में स्थित होने वाला ग्रह अथवा स्थित होने वाले ग्रह शुभ हों तो कुंडली में बनने वाला पर्वत योग भंग नहीं होता तथा इसके शुभ फल जातक को प्राप्त होते हैं।
►ज्योतिषियों का एक वर्ग यह भी मानता है कि यदि किसी कुंडली में लग्न का स्वामी अर्थात लग्नेश केंद्र के घरों में से किसी घर में स्थित हो तथा साथ ही साथ कुंडली के 12वें घर का स्वामी भी केन्द्र के ही किसी घर में स्थित हो तो भी कुंडली में पर्वत योग का निर्माण होता है। इस प्रकार से बनने वाले पर्वत योग में कुंभ लग्न के स्वामी शनि की गणना नहीं की जाती क्योंकि कुंभ लग्न के स्वामी होकर शनि 12वें घर के स्वामी भी हो जाते हैं जिससे लग्नेश तथा 12वें घर का स्वामी एक ही हो जाता है। इस प्रकार पर्वत योग की बहुत सी परिभाषाएं उपलब्ध हैं किन्तु इनमें से पहली परिभाषा सबसे अधिक प्रचलित तथा मान्य है जिसके चलते अधिकतर ज्योतिषी कुंडली में केन्द्र के सभी घरों में किसी न किसी ग्रह के स्थित होने पर पर्वत योग का निर्माण निश्चित मानते हैं।
► अभ्यास तथा अनुभव में यह पाया है कि कई जातकों को कुंडली के सभी केन्द्रिय घरों में ग्रह स्थित होने पर भी पर्वत योग से संबंधित शुभ फल प्राप्त नहीं हो पाते जिसका कारण इन ग्रहों में से एक अथवा एक से भी अधिक ग्रहों का कुंडली में अशुभ होना होता है। इसलिए कुंडली में पर्वत योग के निर्माण को निश्चित करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि केन्द्र के घरों में स्थित ग्रह शुभ हैं अथवा अशुभ क्योंकि इन ग्रहों के अशुभ होने की स्थिति में कुंडली में पर्वत योग न बनकर कोई अशुभ योग अथवा दोष भी बन सकता है जैसे कि कुंडली के 1, 4 अथवा 7वें घर में बैठा अशुभ मंगल कुंडली में मांगलिक दोष का निर्माण कर सकता है। इसलिए किसी कुंडली में पर्वत योग का निर्माण होने के लिए यह आवश्यक है कि कुंडली के केन्द्रिय घरों में स्थित सभी ग्रह शुभ होने चाहिएं। यह तथ्य भी मेरे संज्ञान में आया है कि कुंडली के 6 अथवा 8वें घरों में शुभ ग्रह स्थित होने की स्थिति में कुंडली में बनने वाले पर्वत योग के शुभ फलों में कोई विशेष कमी नहीं आती जबकि इन घरों में स्थित होने वाले ग्रहों के अशुभ होने की स्थिति में कुंडली में बनने वाले पर्वत योग के शुभ फलों में बहुत सीमा तक कमी आ सकती है विशेषतया जब कुंडली के आठवें घर में अशुभ मंगल मांगलिक दोष बना रहें हों अथवा इसी घर में अशुभ राहु केतु काल सर्प दोष बना रहें हों। इसलिए किसी कुंडली में पर्वत योग के निर्माण तथा फलादेश का निर्णय करते समय इन सभी तथ्यों का भली भांति विचार कर लेना चाहिए।