there are 94 elements in the rigveda.

ऋग्वेद में 94अवयव कहे गये है – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | There are 94 elements in the Rigveda. – vaidik jyotish Shastra

 

ऋग्वेद में 94अवयव कहे गये है

तुर्भि: साकं नवति च नामभिश्चक्रं न वृतं व्यतीखींविपत। बृहच्छरीरो विमिमान ऋक्कभियुर्वाकुमार: प्रत्येत्याहवम॥ (ऋ.म.१.सू.१५५.म.६.)

उक्त मंत्र में गति विशेष द्वारा विविध स्वभाव शाली काल के ९४ अंशों को चक्र की तरह वृत्ताकार कहा गया है। उक्त कालावयवों में १ सम्वतसर २ अयन ५ ऋतुयें १२ माह २४ पक्ष ३० अहोरात्र ८ पहर और १२ आरा मानी गयी हैं। ऋतुओं में हिमन्त और शिशिर एक ऋतु मानी गयी है। इस प्रकार ९४ कलावयवों की गणना की गयी है।

ऋग्वेद में रशियों की गणना निम्न मंत्र से की गयी है:-

“द्वादशारं नहि तज्जराय बर्वर्तिचक्रं परिद्यामृतस्य। आपुत्रा अग्ने मिथुनासो अत्र सप्तशतानि विंशतिश्च तस्थु:॥” (ऋ.म.सू.१६५म.१६)

सत्यामक आदित्य का १२ अरों (माह) सयुंक्त चक्र स्वर्ग के चारों ओर बारह भ्रमण करता है। जो कभी पुराना नही होता है,इस चक्र में पुत्र स्वरूप ७२० (३६० दिन,३६० रात) निवास करते हैं।

ज्योतिष में वर्ष को उत्तरायण एव दक्षिणायन दो विभागों में विभाजित किया गया है,उत्तरायण का अर्थ है बिन्दु से सूर्य का उत्तर दिशा की ओर जाना तथा दक्षिणायन से तात्पर्य है सूर्य का सूर्योदय बिन्दु से दक्षिण की ओर चलना। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार:-

“बसंतो ग्रीष्मो वर्षा:। ते देवा ऋतव: शरद्धेमतं शिशिरस्ते पितरौ………स (सूर्य:) यत्रो तगार्वतते देवेषु र्तहि भवति………यत्र दक्षिणावर्तते पितृषु र्तहि भवति॥

उक्त मंत्र के अनुसार बसंत ग्रीष्म वर्षा ये देव ऋतुयें है,शरद हेमन्त और शिशिर यह पितर ऋतुयें हैं। जब सूर्य उत्तरायण मे रहता है तो ऋतुये देवों में गिनी जाती है। तैत्तरीय उपनिषद में वर्णन है कि सूर्य ६ माह उत्तरायण और ६ माह दक्षिणायन में रहता है:-

“तस्मादादित्य: षण्मासो दक्षिणेनैति षडुत्तरेण”. (तै.स.६.५.३)

वैदिक काल में महिनो के नाम मधु और माधव से ही चलते थे,परन्तु कालान्तर में इनके नाम मिट गये और तारों के नाम पर नवीन नाम प्रचलित हो गये। हमारे ऋषियों ने इस बात को स्वीकार नही किया कि ऋतुओं एवं महिनो में सम्बन्ध ना रहे,उन्होने तारों के नाम से महिना बनाना शुरु कर दिया,तैत्तरीय ब्राह्मण मे एक स्थान पर यह स्पष्ट होता है,कि तारों का वेध मास निर्धारण के लिये आरम्भ हो गया था।

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