पाश्चात्य देशों में वृत्ताकार कुंडली बनाने का प्रचलन है। लग्न से आरंभ करने पर कुंडली बारह भावों में बंट जाती है। लग्न स्पष्ट को प्रथम भाव का आरंभ माना जाता है। लेकिन भारतीय पद्धति में लग्न स्पष्ट को प्रथम भाव का भाव मध्य माना जाता है। इसमें भावों को बांई ओर से क्रम से रखा जाता है।