कुंडली के पाँचवे भाव को वैदिक ज्योतिष में संतान भाव कहा जाता है तथा अपने नाम के अनुसार ही कुंडली का यह भाव संतान प्राप्ति के बारे में बताता है। हालांकि कुंडली के कुछ और तथ्य भी इस विषय में अपना महत्त्व रखते है। यहां पर यह बात घ्यान देने योग्य है कि कुंडली का पाँचवा घर केवल संतान की उत्पत्ति के बारे में बताता है तथा संतान के पैदा हो जाने के बाद व्यक्ति के अपनी संतान से रिश्ते अथवा संतान से प्राप्त होने वाला सुख को कुंडली के केवल इसी घर को देखकर नहीं बताया जा सकता तथा उसके लिए कुंडली के कुछ अन्य तथ्यों पर भी विचार करना पड़ता है। कुंडली का पाँचवा भाव बलवान होने से तथा किसी शुभ ग्रह के प्रभाव में होने से जातक स्वस्थ संतान पैदा करने में पूर्ण रुप से सक्षम होता है तथा ऐसे व्यक्ति की संतान आम तौर पर स्वस्थ होने के साथ-साथ मानसिक, शारीरिक तथा बौद्भिक स्तर पर भी सामान्य से अधिक होती है तथा समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सक्षम होती है। दूसरी ओर कुंडली का पाँचवा भाव बलहीन होने की स्थिति में जातक को संतान की उत्पत्ति में समस्याएं आती हैं।
कुंडली का पाँचवा भाव व्यक्ति के मानसिक तथा बौद्धिक स्तर को दर्शाता है तथा उसकी कल्पना शक्ति, ज्ञान, शिक्षा, तथा ऐसे ज्ञान तथा शिक्षा से प्राप्त होने वाले व्यवसाय, धन तथा समृद्धि के बारे में भी बताता है।
कुंडली का पाँचवा भाव जातक के प्रेम-संबंधों के बारे में बारे में भी बताता है।
शरीर के अंगों में कुंडली का यह भाव जिगर, पित्ताशय, अग्न्याशय, तिल्ली, रीढ की हड्डी तथा अन्य कुछ अंगों को दर्शाता है। कुंडली के पाँचवे भाव पर किन्हीं विशेष क्रूर ग्रहों का प्रभाव जातक को प्रजनन संबंधित समस्याएं तथा मधुमेह, अल्सर तथा पित्ताशय में पत्थरी जैसी बीमारियों से पीड़ित कर सकता है।