कुंडली के तीसरे भाव को वैदिक ज्योतिष में बंधु भाव कहा जाता है, कुंडली का तीसरा भाव कुंडलीधारक के पराकर्म को भी दर्शाता है तथा इसिलिए कुंडली के इस भाव को पराक्रम भाव भी कहा जाताहै।
कुंडली के इस भाव से जातक के अपने भाई-बंधुओं, दोस्तों, सहकर्मियों तथा पड़ोसियों के साथ संबधों का पता चलता है। किसी व्यक्ति के जीवन काल में उसके भाईयों तथा दोस्तों से होने वाले लाभ तथा हानि के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कुंडली के इस भाव का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है। जिन व्यक्तियों की कुंडली में तीसरा भाव बलवान होता है तथा किसी अच्छे ग्रहके प्रभाव में होता है, ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों, दोस्तों तथा समर्थकों के सहयोग से सफलतायें प्राप्त करते हैं। जबकि दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में तीसरे भाव पर अशुभ बुरे ग्रहों का प्रभाव होता है, ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में अपने भाईयों तथा दोस्तों के कारण बार-बार हानि उठाते हैं तथा इनके दोस्त या भाई इनके साथ बहुत जरुरत के समयपर विश्वासघात भी कर सकते हैं।
शरीर के अंगों में यह भाव कंधों तथा बाजुओं को दर्शाता है तथा विशेष रूप से दायें कंधे तथा दायें बाजू को। इसके अतिरिक्त यह भाव मस्तिष्क से संबंधित कुछ हिस्सों तथा सांस लेने की प्रणाली को भी दर्शाता है तथा इस भाव पर किसी बुरे ग्रह का प्रभाव कुंडली धारक को मस्तिष्क संबंधित रोगों अथवा श्व्सन संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है।