– दोनों की राशियां एक दूसरे से समसप्तक हों, एक से अधिक ग्रह समसप्तक हों। चंद्रमा के एक-दूसरे की कुंडली में समसप्तक होने पर वैचारिक ताल मेल उत्तम रहता है।
– दोनों के शुभ ग्रह समान भाव में हों अर्थात एक की कुंडली में शुभ ग्रह यदि लग्न, पंचम, नवम या केंद्र में हों, दूसरे के भी इन्ही भावों में हों।
– दोनों के लग्नेश तथा राशि स्वामी एक ही ग्रह हों। जैसे एक की राशि मीन हो, दूसरे की जन्म लग्न मीन होने पर दोनों का स्वामी गुरू होगा।
– दोनों के लग्नेश, राशि स्वामी अथवा सप्तमेश समान भाव में या एक दूसरे के सम-सप्तक होने पर आपसी रिश्तों में प्रगाढ़ता और बेहतरीन सामंजस्य रहता है।
– किसी एक की जन्म कुंडली में लग्नेश व सप्तमेश में राशि परिवर्तन हो, जैसे मेष लग्न की कुंडली में मेष का स्वामी मंगल सप्तम भाव में हो तो आपस में उत्तम प्रीति रहती है।
– एक के सप्तम भाव में जो राशि हो वही दूसरे की नवमांश कुंडली का लग्न हो, एक के सप्तमेश की नवमांश राशि दूसरे की चंद्र राशि हो।
– दोनों की कुंडलियों के ग्रहों में समान दृष्टि संबंध हो। जैसे एक के गुरू चंद्र में दृष्टि संबंध हो तो दूसरे की कुंडली में भी यही ग्रह दृष्टि संबंध बनाएं।
– सप्तमेष ग्यारहवें या द्वितीय भाव में स्थित हो, नवमांश कुंडली में भी सप्तमेश 2, 5 या 11वें भाव में हो तो जातक के जीवन में समरसता, व्यापार में लाभ होता है।