* राहु शून्य डिग्री से 20 डिग्री में हो तो अच्छा फल देता है जबकि 20 डिग्री से 30 डिग्री में मिश्रित फलदायी है।
* जन्म नक्षत्र में ही राहु हो तो भी उसका अच्छा फल प्राप्त होता है।
* यदि स्त्री राशिगत केन्द्र त्रिकोण में स्थित है तो छाया ग्रह के गुण अनुसार शुभ परिणाम का द्योतक है।
* यदि विदेश यात्रा योग की जाँच की जाना हो तो अन्य योग जैसे नवम नवमेश, द्वादश द्वादेश के चर राशिगत परिणाम के साथ-साथ सदैव राहु के परिणाम को भी देखा जाना चाहिए। तृतीय, चतुर्थ, नवम, दशम भावगत है तो विदेश यात्रा योग प्रबल होता है। यदि अन्य योग के साथ गोचरवश ग्रह भी प्रभाव दें, तब यह विदेश यात्रा योग भी देता है।
* राहु/ केतु यदि कारक ग्रह के साथ विराजमान हो जाए तो वह कारक ग्रह भी बन जाता है अर्थात सहस्थिति अनुसार यदि त्रिकोण भाव से त्रिकोणेश के साथ बैठे तो अपनी शक्ति भी भाग्येश त्रिकोणेश को देकर दुगना प्रभाव दे देगा (हाँ अष्टम द्वादश में पापी ग्रह के साथ यह अवश्य मृत्युकारी, कष्टकारी योग भी छाया ग्रह होने के कारण देगा)।
* यदि आकस्मिक धन प्राप्ति योग की व्याख्या किसी कुंडली में करना हो तो धनेश, लाभेश एवं धनकारी गुरु ग्रह के साथ-साथ राहु की स्थिति का प्रभाव ही अधिकांश आकस्मिक धन योग प्राप्ति को काफी हद तक प्रभावित करेगा।
* शुभ ग्रह जिसे केन्द्राधिपति दोष प्राप्त है, के साथ बैठने पर राहु को भी केन्द्राधिपति दोष की प्राप्ति होगी जबकि पापी केन्द्रेश के साथ होने पर यह पापत्व कम कर शुभकारी परिणाम देगा।
कुल मिलाकर राहु के गुण-अवगुण राशिगत भावेश के परिणामों के आधार पर ही तय होते हैं। यद्यपि राहु अपने रोगकारी गुण तो यथावत ही रखता है। अतः ज्योतिषी को अपनी पैनी नजर का उपयोग कर तदनुसार ही परिणाम घोषित करना चाहिए, न कि सदैव राहु के भयकारी परिणाम से भयभीत करना चाहिए।