bukhar

बुखार – पुरुष रोग का होम्योपैथी उपचार – bukhar – purush rog ka homeopathy se upchar

बुखार
जानकारी :-

जब शरीर का ताप बढ़ जाता है तो उसे ही बुखार कहते हैं। शरीर के किसी भी अंश में जलन होने या किसी तरह का जहर खून के साथ मिल जाने पर बुखार हो जाता है जो बुखार एक बार ठीक होकर दुबारा से आ जाता है तो उसे सविराम ज्वर या विषम ज्वर कहते हैं। जो ज्वर हमेशा बना रहता है और ठीक नहीं होता है उसे अविराम ज्वर कहते हैं। जो बुखार घटते-घटते फिर से बढ़ जाता है, उसे स्वल्प-विराम ज्वर कहते हैं।

बुखार आना इस बात की ओर संकेत करता है कि शरीर के अन्दर कहीं किसी प्रकार का संक्रमण हो गया है। शरीर का सामान्य तापक्रम 98.6 फारेनहाइट या 36 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। शरीर का तापमान मुंह में या बगल (कांख में) में थर्मामीटर लगाकर नापा जा सकता है, लेकिन इन दोनों स्थानों के तापमान में लगभग एक डिग्री फारेनाहाइट का अंतर होता है।

कारण :-

बहुत ज्यादा परिश्रम करना, मासिकधर्म तथा डिम्ब क्षरण के समय, उच्चतापमान के वातावरण से, बैक्टीरिया, वायरस या फंगस का संक्रमण शरीर के किसी भाग में हो जाना आदि कारणों से बुखार होता है। बुखार कई प्रकार के रोगों के कारण भी होता है जैसे- कैंसर, आमवात, हारमोन में वृद्धि होना, थायराइड रोग, लू, चोट लगना आदि।

बुखार होने के साथ होने वाले निम्न लक्षण :-

1. सिर में दर्द होना।

2. शरीर में कमजोरी महसूस होना।

3. मांसपेशियों में दर्द होना।

4. कमर में दर्द होना।

5. सर्दी लगना और कड़ापन आ जाना।

6. बेहोशीपन महसूस होना या कभी-कभी बेहोश हो जाना।

7. प्रलाप (बेहोशी में बुदबुदाना)।

8. त्वचा पर कई प्रकार की फुंसियां निकलना।

9. शरीर से पसीना आना।

बुखार होने पर क्या करें और क्या न करें :-

बुखार से पीड़ित रोगी को शारीरिक और मानसिक श्रम से बचना चाहिए।
शरीर में पानी की कमी न हो इसके लिए तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
रोगी को खिचड़ी और मसूर की दाल का सेवन करना चाहिए।
रोगी को कार्बोनिक पेय, ठण्डे रस व फल जैसे ककड़ी, खीरे और केले का सेवन नहीं करना चाहिए।
बुखार को कम करने के लिए माथे पर ठण्डी पटि्टयां लगानी चाहिए।
अधिक बुखार होने पर पूरे शरीर को गीले कपड़े में लपेटने से लाभ मिलता है।
बुखार से पीड़ित रोगी को हल्का और पौष्टिक भोजन करना चाहिए जिसमें सब्जियों का रस और सूप हो।

बुखार पांच प्रकार के होते हैं :-

साधारण-ज्वर (सिम्पल फीवर) :

यह बुखार सर्दी लग जाने, पानी में अधिक देर तक भीग जाने, पेट की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या होने, धूप में घूमने, ज्यादा खा लेने, भय लगने एवं अधिक देर तक परिश्रम करने से होता है।

साधारण ज्वर का विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :

1. कैम्फर : यदि रोगी को सर्दी लगकर बुखार हो तो रोग की पहली अवस्था में जब रोगी को ऐसा लगे कि बुखार या जुकाम हो गया है, नाक से पानी बह रहा हो, थोड़ी-सी मेहनत करने से रोग के लक्षणों में वृद्धि हो रही हो। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए कैम्फर औषधि की मूलार्क की एक-एक बूंद दो तीन बार सेवन करने से रोग ठीक हो जाता है।

2. इपिकाक : इस प्रकार के रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इपिकाक औषधि की 30 शक्ति की एक मात्रा प्रति तीन घंटे पर सेवन करते रहना चाहिए। इस औषधि के सेवन के फलस्वरूप रोगी को अधिक लाभ मिलता है और उसका यह बुखार ठीक हो जाता है। इस औषधि के उपयोग से अनियमित ज्वर (रेगुलर केसेस) भी ठीक होता है।

3. ऐकोनाइट : साधारण बुखार को ठीक करने के लिए इस औषधि की 6 से 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए यदि रोगी में इस प्रकार के लक्षण हैं- सर्दी लगने से शरीर का ताप बढ़े, प्यास लग रही हो एवं खुश्क गर्मी महसूस हो रही हो। यदि कैम्फर औषधि का उपयोग करने के बाद भी यह बुखार ठीक न हो तो ऐकोनाइट औषधि से उपचार करना चाहिए। भय के कारण बुखार हो गया हो या किसी अन्य रोग के कारण से बुखार हो गया हो तो भी ऐकोनाइट औषधि के फलस्वरूप यह रोग ठीक हो सकता है। सर्दी लगने से बुखार हो गया हो तथा इसके साथ ही जुकाम हो, खांसी हो रही हो तो ऐकोनाइट औषधि से उपचार करना चाहिए। यह औषधि इस प्रकार के बुखार को ठीक करने में रोग की प्रथम अवस्था में लाभदायक है। यह औषधि बार-बार उपयोग में लाई जा सकती है।

4. बेलाडोना : सर्दी लगकर अचानक ही तेज बुखार हो गया हो, आंखें लाल हो गई हो, तेज सिर में दर्द हो रहा हो, शरीर में तेज जलन हो रही हो और बुखार होने के साथ ही प्यास नहीं लग रही हो तो इस प्रकार के लक्षण के होने पर उपचार करने के लिए बेलाडोना औषधि की 6 से 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

5. ग्लोनॉयन : गर्मी या लू लगने के कारण से बुखार हुआ हो तथा इसके साथ ही तेज दर्द हो रहा हो तो इस बुखार को ठीक करने के लिए इसकी 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

6. फेरम फॉस : यदि बुखार लगने पर कोई विशेष लक्षण न हों तो इस बायोकैमिक औषधि को प्रति दो से तीन घंटे के अंतर पर तब तक देते रहना चाहिए जब तक की यह बुखार ठीक नहीं हो जाता है।

7. रस टॉक्स : यदि पानी में भीगने के कारण से बुखार हुआ हो तो इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। इस बुखार को ठीक करने के लिए डलकेमारा औषधि का भी उपयोग किया जा सकता है। यदि बुखार से पीड़ित रोगी को ठण्ड लगने से कई घंटे पहले परेशान करने वाली खांसी हो रही हो और जब तक ठण्ड लगे तब तक बुखार बना रहे तो ऐसे बुखार को ठीक करने के लिए रस टॉक्स औषधि अधिक लाभदायक है।

8. नक्स वोमिका : यदि किसी को बुखार होने के कारण कब्ज हो तो इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। यह औषधि शीत प्रधान है, लेकिन इस औषधि का उपयोग रोगी की उस अवस्था में करते हैं जब रोगी को ठण्ड और गर्मी एक-दूसरे के बाद महसूस होती रहती है।

9. लुएटिकम : जब किसी बच्चे का बुखार न टूटे और पता चले कि उसकी माता को तीन-चार बार गर्भपात हो चुका है, उसकी गर्भाशय की ग्रीवा में अल्सर हो गया है एवं सख्त प्रदर-स्राव भी हो, उसे शाम के चार से आठ बजे की बीच बुखार आ जाता हो तो इस औषधि की 1m या 10m की एक मात्रा का सेवन कराने से लाभ होता है।

10. लाइको : यदि रोगी स्त्री को बुखार शाम के चार से आठ बजे के बीच में आता हो तो ऐसे बुखार को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है।

11. ब्रायोनिया : यदि किसी रोगी का बुखार ठीक होकर बार-बार आ रहा हो तो ब्रायोनिया औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है। टाइफॉयड को ठीक करने में भी इसका उपयोग लाभदायक होता है।

अविराम ज्वर (रिमिटेन्ट और किन्टन्यूयस और टाइफायड फीवर) :

यह बुखार टाइफॉयड की तरह चढ़ता और उतरता रहता है और जल्दी ठीक नहीं होता है। इस रोग के होने पर रोगी को बहुत कम ठण्ड महसूस होती है, इसके बाद कंपकंपी होकर बुखार चढ़ने लगता है। कभी ठण्ड तो कभी गर्मी महसूस होती है, शरीर में गर्मी महसूस होती है, त्वचा सूखी रहती है और रुखा रहता है, बेचैनी होती है, प्यास लगती है, जीभ सूखी और सफेद रहती है, नाड़ी की गति तेज होती है, रोगी तेजी से जल्दी-जल्दी सांस लेता रहता है और छोड़ता है। रोगी का पेशाब थोड़ा और लाल रंग का होता है, कमर और पीठ की रीढ़ में दर्द होता है। कभी-कभी कब्ज की समस्या भी रहती है या कभी पतले दस्त आते हैं, सिर में दर्द होता है, रोगी को खाने की इच्छा नहीं रहती।

यह रोग कई प्रकार के कारणों से होता है जैसे- मौसम में बदलाव होना, गीले कपड़े पहनना, बहुत ज्यादा शारीरिक और मानसिक परिश्रम करना, बहुत गर्मी या बहुत सर्दी लग जाना, शरीर की सफाई ठीक प्रकार से न होना, चोट लग जाना, रात को अधिक जागना तथा कब्ज होना आदि।

इस रोग से पीड़ित रोगी का बुखार जब तक बिल्कुल ठीक न हो जाए तब तक आरारूट, सागू, धान का लावा तथा ठण्डे पानी का सेवन करना चाहिए और बुखार ठीक हो जाने पर चार से पांच दिन के बाद अन्न खाना चाहिए।

अविराम ज्वर या टाइफॉयड का विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :

1. पाइरोजेन : टाइफॉयड को ठीक करने में क्लोरोमाइसिटीन औषधि से भी लाभ न मिले तो इस रोग का उपचार करने के लिए पाइरोजे औषधि की 200 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

2. बेलेडोना : अविराम ज्वर से पीड़ित रोगी के माथे और गले की नलियों में जलन हो रही हो, ठण्ड कम लग रही हो, शरीर में ज्यादा जलन हो रही हो, पसीना न आ रहा हो या कपड़े से ढंकी जगह में थोड़ा पसीना आ रहा हो, आंखें लाल हो गई हो, नींद न आ रही हो, प्यास लगती हो, मुंह और होंठ सूख गए हो, प्रलाप (बेहोशी में बुदबुदाना) होने के साथ ही सिर में दर्द होना आदि। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इसकी 3 से 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभदायक है। रक्त-प्रधान और मोटे-ताजे मनुश्यों के लिए यह औषधि अधिक लाभकारी है।

3. जेलसिमियम : अविराम ज्वर से पीड़ित रोगी में अधिक कमजोरी होने के कारण से हाथ, पैर, जीभ में कंपन होती हैं, आंखें बंद होने लगती हैं, धुंधला दिखाई देना, नाड़ी कमजोर हो जाती है, थोड़ी प्यास लगती है और अधिकतर प्यास नहीं लगती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इसकी 1x मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

4. बैप्टीशिया : टाइफॉयड की शुरुआती अवस्था से अन्त तक बैप्टीशिया औषधि की निम्न-शक्ति में प्रयोग करने से रोग ठीक हो जाता है और किसी दूसरी औषधि की जरूरत भी नहीं पड़ती। इस रोग से पीड़ित रोगी का पेट तन जाता है, रोगी नींद की अवस्था से ऊठकर एक दो शब्द का उत्तर देकर फिर से सो जाता है, चेहरा फूला रहता है। रोगी सोचता है कि मैं एक नहीं दो हूं, मेरे अंग इधर-उधर बिखरे पड़े हैं एवं रोगी अपने अंगों को बटोरता रहता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए बैप्टीशिया औषधि की मूलार्क की 12 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

5. ब्रायोनिया : रोगी में टाइफॉयड बुखार का असर धीरे-धीरे होता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को कब्ज हो, तेज प्यास लग रही हो, सिर भारी सा लगता है, गले की नसें, माथा, गर्दन, हाथ, पैर में दर्द होता हो, हिलने-डुलने में दर्द बढ़ता हो, सांस लेने में कष्ट हो, सूखी खांसी होती हो, मलद्वार में जलन होती हो, जीभ पीली हो जाती हो, खाई हुई चीजों की उल्टी हो जाती हो, कफ और पित्त की उल्टी होती हो, चेहरा पीला हो गया हो, यकृत में दर्द हो, रोगी पानी अधिक पीता हो एवं चुपचाप पड़ा रहता हो। इस तरह के लक्षणों से पीड़ित रोगी को ठीक करने के लिए ब्रायोनिया औषधि की 3, 6, 12 या 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। ऐसा रोगी कभी-कभी यह भी सोचता है कि मैं घर से दूर हूं और रोगी कहता है कि मुझे घर ले चलो।

6. रस टॉक्स : इस रोग के शुरुआत में ही रोगी को पतले दस्त होने लगें, रोगी में बेचैनी हो, इधर-उधर करवटें बदलने से उसे चैन मिलता हो तब इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

7. युपेटोरियम-पर्फ : सविराम ज्वर से पीड़ित रोगी के सिर में दर्द हो, जी मिचला रहा हो या पित्त की उल्टी हो, पानी की पीने के बाद उल्टी आ रही हो, कंपकंपी कम होने के समय में उल्टी होना और सारे शरीर में दर्द होना आदि लक्षण होने पर रोग को ठीक करने के लिए युपेटोरियम-पर्फ की 3 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है।

8. टाइफॉयडीनम : यदि किसी को ऐसा लगे कि उसे टाइफॉयड होने वाला है अर्थात इस रोग के होने का सन्देह हो तो टाइफॉयडीनम औषधि की 200 शक्ति की एक दो मात्रा का सेवन करने से रोग आगे नहीं बढ़ पाता और काबू में रहता है।

9. आर्निका : टाइफॉयड से पीड़ित रोगी की अवस्था अत्यधिक गम्भीर हो जाती है लेकिन फिर भी रोगी कहता है कि मै बिल्कुल ठीक हूं, रोगी तन्द्रा की अवस्था में पड़ा रहता है, उसे कोई आवाज देता है तो वह उसका जवाब देते ही फिर से उसी अवस्था में लेट जाता है। जब चिकित्सक उसके पास आता है तो वह कहता है कि क्यों आए हो, आपको नहीं बुलाया गया, चले जाओ। रोगी की सांस बदबूदार होती है तथा उसके मल से भी बदबू आती है। रोगी को अपना बिस्तर बड़ा कड़ा महसूस होता है और उसे यह इतना कड़ा महसूस होता है कि दर्द के मारे एक तरफ थोड़ी ही देर लेट सकता है। रोगी को अनजाने में दस्त-पेशाब निकल जाता है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग का उपचार करने के लिए आर्निका औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

10. आर्सेनिक : टाइफॉयड से पीड़ित रोगी के शरीर में ताकत की कमी होने लगती है, अधिक कमजोरी महसूस होती है, जरा से हिलने से हांफता है तथा थकावट महसूस होती है। रोगी को बैचनी अधिक होती है, वह अंगों को हिलाता रहता है, किसी भी अवस्था में चैन नहीं मिलता है। रोगी का मुंह खुश्क रहता है, जीभ भी खुश्क हो जाती है, रोगी थोड़ा-थोड़ा घूंट-घूंट करके पानी पीता है, सोचता है कि अब बचूंगा नहीं। रात या दिन के 1 बजे से 2 बजे के समय में रोगी को अधिक परेशानी होती है। ऐसे ही लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

11. कार्बो वेज : टाइफॉयड से पीड़ित रोगी को ऐसा लगने लगे कि उसकी जीवनी-शक्ति खत्म हो रही है। रोगी का शरीर ठण्डा पड़ जाता है, शरीर से ठण्डा पसीना निकलता है, शरीर में अधिक कमजोरी होती है, रोगी हांफने लगता है, रोगी पंखा हिलाने के लिए कहता है, उसके शरीर की नसों में खून जमने लगता है, शरीर नीला पड़ जाता है या चेहरा तथा शरीर बिल्कुल पीला पड़ जाता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए कार्बो वेज औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

12. फासफोरिक ऐसिड : टाइफॉयड को ठीक करने के लिए इसकी 1 शक्ति का उपयोग किया जाता है। इस रोग के शुरुआत से ही रोगी के शरीर के अंग-प्रत्यंग तथा मानसिक शक्तियां एक-साथ ही नष्ट हो रही हो, शरीर में कमजोरी धीरे-धीरे बढ़ रही हो, रोगी नींद की अवस्था में पड़ा रहता है लेकिन उसे नींद आती नहीं है और रोगी को इस अवस्था से जगाया जाता है तो वह बिल्कुल सावधान हो जाता है। इस प्रकार के लक्षण के होने पर रोगी का उपचार करने के लिए फासफोरिक ऐसिड औषधि का उपयोग लाभदायक होता है। टाइफॉयड से पीड़ित रोगी का पेट फूला हो, आंखों में चमक नहीं हो, रोगी अचानक देखता रहता है और ऐसा लगता है कि मानो वह धीरे-धीरे स्थिति को समझने का प्रयत्न कर रहा है, जीभ सूखी, भूरी, होंठ काले, मसूढ़ों से खून निकल रहा हो, जबड़ें ऐसे गिर पड़ते हैं कि मानो कमजोरी और शरीर में ठण्डापन होने के कारण मृत्यु हो जाएगी। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए भी फॉसफोरिक ऐसिड औषधि का उपयोग करना चाहिए।

13. ऐकोनाइट : रोगी व्यक्ति की नाड़ी की गति तेज हो जाती है और ऐसा महसूस होता है कि नाड़ी उछल-कूद रही है। शरीर गर्म और सूखा रहता है, कभी ठण्ड लगती है और कभी गर्मी महसूस होती है, बार-बार छींके आती हैं, बेचैनी महसूस होती है, सिर में तेज दर्द होता है, सांस लेने और छोड़ने की गति तेज हो जाती है। रात के समय में रोगी के रोग के लक्षण बढ़ने लगते हैं, हल्का प्रलाप हो जाता है, गले की नसें फड़कने लगती हैं, प्यास तेज लगती है, रोगी को ऐसा लगता है कि उसकी मृत्यु हो जाएगी। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए ऐकोनाइट औषधि की 3ग मात्रा का उपयोग करना चाहिए इससे रोग ठीक हो जाता है जैसे ही रोगी के शरीर से पसीना आने लगे इसका सेवन बंद कर देना चाहिए।

14. विरेट्रम-विरिडि : रोगी की नाड़ी भारी होना, कड़ी तथा तेज होना, जीभ पीली हो जाना तथा उसके बीच के भाग में लाल रेखा होना, शरीर में तेज कंपकंपी होना, चक्कर आना, सिर में दर्द होना, शारीरिक कमजोरी अधिक होना तथा मिचली आना आदि लक्षण अविराम ज्वर से पीड़ित रोगी में है तो उसके इस रोग को ठीक करने के लिए विरेट्र-विरिडि औषधि की 1x मात्रा का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

15. फेरम-फास : अविराम ज्वर से पीड़ित रोगी को तेज बुखार न हो, नाड़ी कमजोर हो तथा इसके साथ ही खांसी हो तो रोग को ठीक करने के लिए फेरम-फास औषधि की 3x, 6x या 12x मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

16. साइना : पेट में कीड़े होने के कारण अविराम ज्वर हो गया है तो इस रोग को ठीक करने के लिए 2x या 200 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

सविराम ज्वर (इनटरमिटेन्ट मलेरिया फीवर) :-

यह ज्वर मलेरिया आदि रोग की तरह होकर ठीक हो जाता है और फिर दूसरे, तीसरे या सातवें दिन आ जाता है। इस बुखार को मलेरिया भी कहते हैं क्योंकि इस ज्वर में विराम आ जाता है, ज्वर होकर टूट जाता है इसलिए इसे सविराम के नाम से जाना जाता है। इस बुखार में रोगी को ठण्ड लगती है, शरीर गर्म रहता है, शरीर से पसीना आता है और प्यास लगती है।

सविराम या मलेरिया ज्वर (इनटेरमिटेन्ट फीवर या मलेरिया) का विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :

1. चिनिनम सल्फ : इस औषधि को कुनीन नाम से भी जाना जाता है। हैनीमैन ने सिनकोना की छाल के काढ़े से अपने ऊपर परीक्षा-सिद्धि की थी। सिनकोना से ही कुनीन बनाई जाती है। उनके स्वस्थ शरीर पर इस औषधि के सेवन से मलेरिया के लक्षण प्रकट हो गये थे। इसी से होम्योपैथी का आविश्कार हुआ। क्योंकि स्वस्थ शरीर पर कुनीन के सेवन से मलेरिया के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं, इसलिए कुनीन मलेरिया ज्वर को ठीक कर सकती है। इस दृष्टि से ऐलोपैथी में मलेरिया के लिए कुनीन का प्रयोग होम्योपैथिक प्रयोग ही समझना चाहिए। होम्योपैथी में भी मलेरिया के लिए यह औषधि मुख्य है। मलेरिया रोग होने के साथ ही रोगी को ठण्ड लगे, शरीर गर्म रहे और पसीना आए तो रोगी के रोग को ठीक करने के लिए चिनिनम सल्फ औषधि की 1x से 3x का प्रयोग करना चाहिए। ऐलोपैथी में भी इसका उपयोग किया जाता है लेकिन इसकी अधिक मात्रा का उपयोग किया जाता है जिससे नुकसान भी हो सकता है, रोगी बहरा भी हो सकता है, जबकि होम्योपैथिक में इसकी निम्न या उच्च शक्ति की मात्रा का उपयोग किया जाता है।

2. चायना : इस रोग से पीड़ित रोगी को ठण्ड लगने के साथ ही शरीर गर्म हो तथा पसीना आ रहा हो, ठण्ड लगने से पहले प्यास लग रही हो, जाड़ा और ताप चढ़ने पर प्यास न लग रही हो, पसीना आने पर तेज प्यास लग रही हो, इस पसीने के निकलने के कारण शरीर में कमजोरी महसूस होती है। ऐसे लक्षणों के होने पर उपचार करने के लिए चायना औषधि की 30 से 200 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है। ऐसे रोगी का बुखार रात को नहीं आता, बुखार का अगला आक्रमण दो से तीन घंटे पहले आता है। सातवें, चौदहवें दिन बुखार आ सकता है।

3. आर्सेनिक : शीत तथा ताप की अवस्था का पूरी तरह विकसित न होना, इन दोनों में से किसी एक अवस्था का बहुत ज्यादा होना या किसी एक अवस्था का बिल्कुल कम होना लेकिन पसीना बिल्कुल भी न हो, ठण्ड लगने की अवस्था में प्यास नहीं लगती है, ताप की अवस्था में थोड़ा-थोड़ा, घूंट-घूंट पानी पीना, पसीना आने की अवस्था में अत्यंत प्यास होना, रात को 12 – 1 बजे बुखार का बढ़ जाना, बेचैनी होना आदि इस प्रकार के लक्षण मलेरिया या किसी भी ज्वर में होने पर आर्सेनिक औषधि की 30 शक्ति से उपचार करना चाहिए।

4. इपिकाक : रोगी व्यक्ति को बुखार होने पर भी कोई विशेष लक्षण प्रकट न हों तो इस अवस्था में रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इपिकाक औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। मलेरिया ज्वर को ठीक करने के लिए सबसे पहले इस औषधि का ही प्रयोग करना चाहिए। ठण्ड लगने से पहले या ठण्ड और गर्मी लगने की अवस्था में रोगी का जी कच्चापन होना या मिचली होना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है।

5. सिड्रन : यदि रोगी का बुखार घड़ी की सूई के अनुसार ठीक एक ही समय पर आता हो तो इस औषधि की 3 शक्ति के द्वारा उपचार करना चाहिए।

6. नैट्रम म्यूर : यदि किसी रोगी को 10 से 11 बजे बुखार चढ़ने लगे, होठों पर पनीले छाले पड़ जाए तो इस प्रकार की अवस्था में रोगी के रोग को ठीक करने के लिए नैट्रम म्यूर औषधि की 200 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। पुराने मलेरिया ज्वर को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग किया जा सकता है। यदि ज्यादा कुनीन के उपयोग करके बुखार को दबा दिया गया हो तथा जिसके कारण से रोगी में कई प्रकार के लक्षण हो गये हो तो उसे दूर करने के लिए नैट्रम म्यूर औषधि का उपयोग करना चाहिए। हो सकता है कि दबा हुआ बुखार लौट आए लेकिन इस औषधि से वह लौटेगा ही नहीं या लौटकर फिर से समूल नष्ट हो जाएगा।

7. लाइकोपोडियम : यदि शाम के चार से आठ बजे के बीच में मलेरिया या कोई अन्य बुखार रहे तो उसे ठीक करने के लिए इस औषधि की 30 या 200 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

8. कार्बो वेज : पुराने मलेरिया को दूर करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए। ठण्ड लगने की अवस्था में रोगी का शरीर बर्फ के समान बिल्कुल ठण्डा हो जाता है, इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि का उपयोग कर सकते हैं।

9. सल्फर : बुखार आने पर विभिन्न प्रकार की औषधियों से उपचार करने पर भी कोई लाभ न मिले तो सल्फर औषधि की 30 या 200 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए। यह नए और पुराने मलेरिया रोग को ठीक करने के लिए भी उपयोगी है।

10. नक्स वोमिका : रोगी को ठण्ड लगने के साथ ही शरीर गर्म हो तथा पसीना आ रहा हो, रोगी को ठण्ड इतनी लगती है कि उसे कपड़ा ओढ़ना पड़ता है। शरीर के किसी भी अंग से कपड़ा उठाने पर सर्दी लगने से कंपकंपी होती है। कपड़ा ओढ़े रखने का मन नहीं करता है, लेकिन ओढ़े बगैर रहा भी नहीं जाता। शरीर में आग की तरह जलन महसूस होती है लेकिन कपड़ा हटा नहीं सकता, हटाते ही कंपकंपी होती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए नक्स वोमिका औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

11. युपेटोरियम पर्फ : बुखार से पीड़ित रोगी के शरीर में तेज दर्द हो तो उसका उपचार करने के लिए इस औषधि की 1 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

प्रसूतिक ज्वर (पुरपेराल फीवर) :

यह ज्वर स्त्री को प्रसव होने के बाद सफाई आदि न होने के कारण होता है। स्त्री को यह बुखार मैला पानी के दब जाने से नहीं चढ़ता लेकिन स्तनों में दूध आ जाने से यह बुखार चढ़ जाता है तब ऐसी स्थिति में ऐकोनाइट जैसी कुछ अल्पकालिक औषधियों से यह रोग ठीक किया जा सकता है। लेकिन यदि प्रसूतिका ज्वर दूषित ज्वर के तौर से आए तो दीर्घकालिक औषधियां की आवश्यकता पडेंगी जिनमें सल्फर, लाइकोपोडियम, फेरम मेट तथा पल्सेटिला औषधियां मुख्य हैं।

प्रसूतिका-ज्वर की विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :

1. सल्फर : प्रसूतिका-ज्वर से पीड़ित स्त्री के पैरों में जलन हो रही हो 11 बजे पेट में खालीपन महसूस हो, भूख भी लग रही हो, रात को परेशानी अधिक बढ़ जाती हो, शरीर से गर्म भाप-सी उठती हो, गर्मी की लहरें एक-दूसरे के बाद आती हो तो स्त्री के रोगी की ऐसी स्थिति में उसे सल्फर औषधि की 30 शक्ति का उपयोग कराने से लाभ मिलता है क्योंकि यह प्रसूतिका-ज्वर दूषित ज्वर की सबसे अच्छी औषधि है। यदि ऑपरेशन कराने के बाद स्त्री को प्रसूतिका-ज्वर होने लगे, ज्वर के साथ ही शरीर में से गर्मी की लहरें उठे तो इस औषधि का उपयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

2. पाइरोजेन : प्रसूतिका-ज्वर जब सेप्टिक हो जाए और इस रोग से पीड़ित स्त्री को ठण्ड लगने के साथ-साथ सारे शरीर में कंपन हो, ये दोनों लक्षण बार-बार दिखाई दे रहे हो, कभी ठण्ड लगे, कभी इसके साथ ही कुछ कंपन हो और नाड़ी के स्पंदन तथा शरीर के तापमान में कोई अनुपात न रहे, तब पाइरोजेन औषधि की 200 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

3. लाइकोपोडियम : प्रसूतिका-ज्वर से पीड़ित स्त्री के शरीर से गर्म पसीना आ रहा हो, इसके साथ प्रसूतिका-ज्वर के अन्य लक्षण भी दिखाई दे रहे हो, ठण्ड लगने के कारण कंपकंपी हो रही हो और कंपकंपी आना बंद न हो तो ऐसे लक्षणों से पीड़ित स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए लाइकोपोडियम औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है। ऐसे ही लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए पाइरोजेन, लाइको तथा सल्फर आदि औषधियों से भी उपचार किया जा सकता है।

4. फैरम मेट : प्रसूतिका-ज्वर से पीड़ित स्त्री का चेहरा लाल-नीला पड़ जाए और ठण्ड लगने पर प्यास लगे और अन्य समय प्यास न लगे। ठण्ड लगने पर चेहरा लाल तमतमा हुआ हो, सारे शरीर से पसीना आए तो ऐसी स्थिति में स्त्री के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 1x, 2 शक्ति, तथा 6 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार किसी अन्य औषधि से नहीं करना चाहिए। यदि स्त्री अधिक कमजोर हो गई हो तो इसकी निम्न-शक्ति का प्रयोग करना चाहिए।

5. पल्सेटिला : प्रसूतिका-ज्वर से पीड़ित स्त्री का शरीर का एक भाग गर्म हो, दूसरा ठण्डा हो, स्त्री तुरंत रो पड़ती है, आंसू बहता रहता है, भय से कांपता है, स्नायविक (नवस्टिम) कमजोरी होना और उत्तेजना के साथ-साथ बेचैनी भी रहना। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित स्त्री का उपचार करने के लिए पल्सेटिला औषधि की 30 शक्ति का उपयोग करते हैं। रोगी के शरीर से सिर्फ एक तरफ खूब पसीना आता है, दूसरी तरफ नहीं, एक तरफ गर्म होता है तथा दूसरी तरफ ठण्डा।

क्षय ज्वर (हेक्ट्रिक और हबीटुअल फीवर और फ्थीसिस) :-

यह ज्वर तपेदिक रोग से पीड़ित रोगी को होता है।

टी.बी. या क्षय-ज्वर (तपेदिक) (फ्थीसिकल और हेट्रिक फीवर) का विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :

1. फास्फोरस : इस रोग से पीड़ित रोगी के छाती में खालीपन तथा कमजोरी महसूस होती है, रोगी का मन शरीर की अपेक्षा तेज गति से विकास करता हैं। टी.बी. को ठीक करने के लिए इसकी 30 शक्ति मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है लेकिन इसका उपयोग रोग के शुरुआती अवस्था में उपयोगी है, जब रोग बढ़ जाए तब न तो निम्न-शक्ति में इसे देना चाहिए और न ही उच्च-शक्ति में। इन दोनों शक्तियों का प्रयोग करने से रोगी में इसका दुष्प्रभाव हो सकता है। ऐसे रोगियों के रोग को ठीक करने के लिए फॉस की 30 से 200 शक्ति से ऊपर या नीचे की शक्ति नहीं देनी चाहिए और वह भी दोहराना नहीं चाहिए।

2. साइलीशिया : टी.बी. की बढ़ी हुई अवस्था में इस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग किया जाता है। इस औषधि के प्रभाव से फेफड़ों में पीब बनने की क्रिया पर नियंत्रण हो जाता है और रोग आगे नहीं बढ़ पाता है। इस रोग को जड़ से ठीक करने के लिए साइलीशिया औषधि के अलावा कोई दूसरी औषधि नहीं है लेकिन रोगी में इस औषधि का इस्तेमाल करने के लिए ऐसे लक्षण भी होने चाहिए। टी.बी. से पीड़ित रोगी को प्राय: ठण्ड, नम हवा में ठीक नहीं रहता और खुश्क हवा में उसे कुछ आराम मिलता है।

3. पल्सेटिला : टी.बी. से पीड़ित रोगी का कफ गाढ़ा, पीला तथा हरे रंग का आता है, शाम के समय में ज्वर बढ़ जाता है, प्यास नहीं लगती, बगल से पसीना आता है, छाती में जख्म हो जाता है और दबाव महसूस होता है, रोगी देखने में स्वस्थ दिखाई पड़ता है लेकिन उसका शरीर पीला रहता है, शरीर में खून की कमी हो जाती है और थूक नमकीन होता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इसकी 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।

4. सीपिया : टी.बी. से पीड़ित रोगी का पेट खाली रहता है, दायीं तरफ के फेफड़े में दर्द होता है। इस प्रकार के लक्षणों के होने पर उपचार करने के लिए इसकी 200 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है।

5. कैलि कार्ब : टी.बी. को ठीक करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति का उपयोग अधिक लाभदायक है। यह विशेषकर उन रोगियों के लिए लाभदायक है जिन्हें प्लूरिसी के बाद यह रोग हो जाता है और छाती में सूई गड़ने जैसा दर्द होता है। यह औषधि उन रोगियों के रोग को भी ठीक करने में उपयोगी है जिनके फेफड़ों में अल्सर हुआ है वे शायद ही इसके बिना ठीक हो सके। इस रोग से पीड़ित रोगी का थूक गोल-गोल होता है, सुबह तीन बजे रोग बढ़ता है, रोगी के पैर के तलुवों में स्पर्श सहन नहीं होता, गला बैठ जाता है, पलकों पर विशेषकर ऊपर की तरफ सूजन आ जाती है, छाती कमजोर हो जाती है। ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के लिए यह बहुत ही लाभदायक औषधि है।

6. ऐसेटिक ऐसिड : टी.बी. से पीड़ित रोगी के सारे शरीर से रात के समय में पसीना निकलता है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए इसकी 3 से 30 की मात्रा का उपयोग लाभकारी है जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।

सर्दी का ज्वर (Catarrhal Fever) :-

इस ज्वर से पीड़ित रोगी की आंखों से, नाक से पानी की तरह का कफ जैसा तरल पदार्थ बहने लगता है, शरीर में ऐंठन होने के साथ ही दर्द होता है, सिर में दर्द होने के साथ ही ऐसा महसूस होता है कि कुछ टपक रहा है, आंखों में पानी भरा रहता है और छींके आती हैं, सिर भारी सा रहता है और उल्टी आती है तथा जी मिचलाता रहता है, कब्ज की समस्या भी रहती है और जम्भाई आती रहती है, आंखें और मुंह भारी महसूस होते हैं, आंखें लाल हो जाती हैं, आवाज बैठ जाती है, खांसी हो जाती है और छाती में दर्द होता है। पानी में भीगना, सर्दी लगना, पेट का गर्म होना, एकाएक शरीर से पसीना आना बंद हो जाना, एकाएक गर्मी से सर्दी में जा पहुंचना, दही तथा खटाई आदि कफ पैदा करने वाली चीजों का सेवन करने से यह ज्वर हो जाता है।

सर्दी न लगना, शरीर को हमेशा ढंके रहना, नाक बंद होने पर नाक के ऊपर और सीने पर सरसों के तेल से मालिश करना चाहिए। रोगी को धान का लावा, साग तथा बार्ली जैसी हल्की चीजें खानी चाहिए।

सर्दी की पहली अवस्था में जब रोगी का शरीर थोड़ा-थोड़ा गरम रहता है, नाक तथा आंखों से पानी गिरता रहता है तो ऐसी अवस्था में पानी के साथ थोड़ा सा कपूर खाने से ही फायदा मिल जाता है।

सर्दी का ज्वर को ठीक करने के लिए विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :

1. ऐकोनाइट : यदि किसी रोगी को छींके आ रही हो, शरीर का ताप बढ़ गया हो, नाक और आंखों से पानी बह रहा हो, बेचैनी हो तथा प्यास लग रही हो तो ऐसी अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए ऐकोनाइट औषधि की 3x या 6 शक्ति का प्रयोग करने से रोग ठीक हो जाता है।

2. एलियम सिपा : रोगी के नाक तथा आंखों से पानी गिर रहा हो, आवाज भारी हो गई हो, गले में सुरसुरी हो, बार-बार बहुत सा पेशाब होना, हाथ-पैरों में दर्द होता हो एवं गर्म कमरे में रोग बढ़ता हुआ महसूस हो तो ऐसे लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए एलियम सिपा 3x मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

3. नक्सवोम : रोगी को कब्ज की समस्या हो, सर्दी होने के साथ ही नाक बंद हो जाए तो इस औषधि की 6 शक्ति से 30 शक्ति का उपयोग किया जा सकता है।

4. इपिकाक : इस रोग से पीड़ित रोगी को उल्टी आ रही हो या मिचली हो तो इस औषधि की 3x मात्रा का उपयोग किया जा सकता है।

5. आर्सेनिक : सर्दी के ज्वर से पीड़ित रोगी की नाक से जलन पैदा करने वाला पानी बह रहा हो तो इस औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए।

6. बेलेडोना : सर्दी के ज्वर से पीड़ित रोगी की आंखें लाल हो गई हो, नींद नहीं आ रही हो, सिर में दर्द आदि लक्षण हो तो उसके रोग को ठीक करने के लिए इसकी 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।

7. ब्रायोनिया : रोगी की छाती में दर्द हो रहा हो तथा सर्दी लगकर सिर भारी महसूस हो, हाथ-पैर तथा पीठ में दर्द हो और अधिक कब्ज की समस्या हो रही हो तो रोग को ठीक करने के लिए ब्रायोनिया औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का सेवन करना चाहिए।

8. पल्सेटिला : सर्दी के ज्वर से पीड़ित रोगी का बुखार ठीक होने के बाद इस औषधि की 6 शक्ति का प्रयोग करने से रोग जड़ से ठीक हो जाता है। इस प्रकार के लक्षणों में नक्स-वोमिका की 3 शक्ति या रस-टॉक्स औषधि की 6 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी है।

माल्टा फीवर :-

यह रोग अधिकतर भारतवर्ष, फिलिपाइन टापू और भूमध्य सागर के किनारे के जनपदों में अधिक दिखाई देता है। यह रोग माल्टा द्वीप में खासकर बहुत ज्यादा होता है। इसी कारण से ही इसे माल्टा ज्वर कहा जाता है। यह रोग मिक्रोकोकक्स मेलिटेनसिस जीवाणु के कारण होता है, जो बकरी के दूध में होता है और जब यह दूध सेवन करते हैं तो यह जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और माल्टा ज्वर हो जाता है।

लक्षण :

माल्टा ज्वर एक सप्ताह तक शरीर के अंदरूनी भागों में छिपा रहता है इसके बाद अचानक अविराम ज्वर के रूप में दिखाई देने लगता हैं, जो दो-तीन सप्ताह तक भी रहता है। इसके बाद दो-चार दिन बुखार रहता है फिर ठीक हो जाता है और फिर से बुखार होकर रोगी में यह पांच-सात महीने तक अविराम ज्वर के रूप में रहता है। इस ज्वर के होने के साथ ही रोगी को कब्ज की समस्या होती है, स्नायु और हडि्डयों में दर्द होता है, हडि्डयों के जोड़ों पर दर्द होता है। कभी-कभी तो कई वषों तक यह रोग ठीक नहीं होता है।

इस रोग से पीड़ित रोगी को अलग रखना चाहिए, उसका मल-पेशाब ध्यान से फेंकना चाहिए, हल्के गरम पानी से उसे स्नान कराना चाहिए। यदि रोगी के शरीर का तापमान 105 डिग्री से ज्यादा बढ़ जाए तो ठण्डे पानी से शरीर या बदन पोंछना चाहिए। रोगी को बकरी का दूध नहीं देना चाहिए।

माल्टा फीवर का विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :

1. ब्रायोनिया : माल्टा फीवर रोग की पहली अवस्था में इस औषधि की 3x, 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग किया जाता है।

2. बैप्टीशिया : इस औषधि के प्रयोग के द्वारा माल्टा फीवर को ठीक करने के लिए इसकी 6 शक्ति या 3x मात्रा का उपयोग लाभकारी है।

3. आर्सेनिक : आर्सेनिक औषधि के उपयोग से माल्टा फीवर को ठीक करने के लिए इसकी 3x या 6 शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं। माल्टा फीवर को ठीक करने के लिए कई प्रकार की औषधि का उपयोग कर सकते हैं जो इस प्रकार हैं- फेरम-फास औषधि की 3x, सियानोथस की 1x, नेट्रम-म्यूर की 30 शक्ति, मर्क की 30 शक्ति, आर्स-आयोड की 3x विचूर्ण, फास्फोरस की 3 शक्ति, सिपिया की 30 शक्ति, लाइको की 6 से 30 शक्ति, सिमिसिफ्यूगा की 3x, रस-टॉक्स की 3 या 30 शक्ति आदि।

बुखार – bukhar – पुरुष रोग का होम्योपैथी उपचार – purush rog ka homeopathy se upchar

Tags: , , , , , , , , , , , , , , , , ,

Leave a Comment

Scroll to Top