kuchh any baaton par prakaash daalate hain!

कुछ अन्य बातों पर प्रकाश डालते हैं! – राशिनुसार पुरुष रोग का उपाय – kuchh any baaton par prakaash daalate hain! – raashinusaar purush rog ka upaay

कुछ अन्य बातों पर प्रकाश डालते हें!

ज्योतिष सिद्धान्तानुसार प्रत्येक ग्रह प्राणी की संरचना के लिए निम्नलिखित तत्व प्रदान करता है:-

सूर्य:-आत्मा,प्रकाश,शक्ति,उत्साह,तीक्ष्णता,ह्रदय,जीवनीशक्ति,मस्तिष्क,पित्त एवं पीठ
चन्द्र:- जल,नाडियाँ,प्रभाव-विचार,चित्त,गति,स्तन,रूप,छाती,तिल्ली
मंगल:- रक्त,उत्तेजना,बाजू,क्रूरता,साहस,कान
बुध:- वाणी,स्मरण-शक्ति,घ्राण-शक्ति,गर्दन,निर्णायक-मति,भौहें
गुरू:-ज्ञान,गुण,श्रुति,श्रवण-शक्ति,सदगति,जिगर,दया,जाँघ,चर्बी तथा गुर्दे
शुक्र:- वीर्य,सुगन्ध,रति,त्वचा,गुप्ताँग,गाल
शनि:- वायु,पिंडली,टांगें,केश,दाँत
राहू:- परिश्रम,विरूद्धता,आन्दोलन/विद्रोही भावनाएं,शारीरिक मलिनता,गन्दा वातावरण
केतु:- गुप्त विद्या-ज्ञान,मूर्छा,भ्रम,भयानक रोग,सहनशक्ति,आलस्य

यदि ग्रह प्रभावी न हो तो रोग नहीं होते. यह स्थिति तब भी उत्पन हो सकती है,जब अपनी निश्चित मात्रा के अनुसार कोई ग्रह प्राणी पर प्रभाव न डाल पाए. उदाहरण के लिए—-सूर्य के साथ( विशेष अंशो में) कोई ग्रह स्थित हो तो वो ग्रह अपना प्रभाव नियमानुसार नहीं दे पाएगा. अब ग्रह जिस शक्ति का स्वामी है,वह शक्ति जब निश्चित मात्रा में जब प्राणी को नहीं मिल पाती तो ऎसे में विभिन्न जटिल स्थिति पैदा होना तय है. शुक्र सौन्दर्यानुभूति प्रदायक ग्रह है. यदि शुक्र सूर्य के प्रकाश में अस्त हो जाए तो वह व्यक्ति की सौन्दर्यशीलता में कमी करेगा ही. ऎसे ही,यदि मंगल सूर्य के प्रभाव क्षेत्र में हो तो व्यक्ति को रक्ताल्पता जैसी शारीरिक व्याधि का सामना करना पड जाता है. कहने का तात्पर्य ये है कि जो भी ग्रह सूर्य के प्रभाव में आकर निस्तेज होगा,शरीर में उस ग्रह से सम्बंधित तत्वों में न्यूनता रहेगी.

आज हम लोगों नें स्वास्थय की समस्या को बिल्कुल टेढी खीर बना डाला है, स्वाभाविकता और सादगी तो जैसे बिल्कुल ही दूर भाग चुकी है. हम प्रकृ्ति के नियमों को न तो समझते हैं और न ही समझ कर उन्हे मानते हैं. बस हम अपनी जिम्मेदारी कभी मौसम पर, कभी जलवायु पर, कभी चिकित्सकों पर तो कभी दवाओं पर—और सब से अधिक जीवाणुओं/विषाणुओं पर डाल देते हैं.

अन्य जीवों की अपेक्षा मानवी मस्तिष्क की जटिलता तो सर्वविदित ही है। ह्रदय की स्पन्दनशीलता(धडकनों) में विकृ्ति आने पर जिस ह्रदय रोग(heart attack) का आधुनिक तकनीक से निदान एवं इलाज किया जाता है, उसको सूर्य ग्रह के साथ संयुक्त कर मनुष्य के सूक्ष्म अवयव पर पडने वाले सूर्य के प्रभाव को स्वीकार किया गया है। सूर्य अग्नि तत्व का उत्पादक होने के कारण ह्रदय की उष्मा तथा उर्जा प्रदान करने वाला महत्वपूर्ण ग्रह है। अब तक मेरा अनुभव यह है कि ग्रीष्म ऋतु में अग्नि तत्व की वृ्द्धि होने के कारण सबसे ज्यादा हार्ट अटैक भी इसी मौसम में होते हैं। यहाँ पश्चिम भक्तों को मेरा ये चैलेन्ज है कि इस कथन को गलत सिद्ध कर के दिखा दें तो भविष्य में इसी ब्लाग पर मेरा प्रत्येक लेख आपको ज्योतिष के विरोध में ही लिखा मिलेगा। सूर्य को जगत की आत्मा कहने के पीछे भी यही रहस्य छिपा हुआ है।

प्रकृ्ति के नियमों के अनुरूप जीवन व्यतीत कर स्वस्थ रहना आसान है. स्वास्थय मानव शरीर की स्वाभाविक अवस्था है. मनुश्य, जैसा कि वह देखने में मालूम होता है, वैसा नहीं है. उससे कहीं ऊँचा है. वह पृ्थ्वी पर रोगी बने रहने के लिए नहीं आया है. वह स्वर्गीय है, ईश्वरीय है,दिव्य है. यदि वह अपने वास्तविक बडप्पन को समझे और उसी के अनुरूप जीवन व्यतीत करे तो वह कभी भी रोग ग्रस्त न हो. ऎसे ही जीने को जीना कहा जाता है और वैसा जीना, जिसमें हर रोज कोई न कोई रोग पीछे लगा है,मरने से भी बुरा है.
आज बनावटी सभ्यता के इस युग में प्रकृ्ति के ये नियम कहीं खो से गए हैं और किसी को समझाओ तो भी जल्दी से किसी को समझ में भी नहीं आते, या कहें कि कोई समझना ही नहीं चाहता. अगर कोई समझाने का प्रयास भी करता है तो सुनने वाले ताज्जुब करने और हँसने लगते हैं.

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