परिचय : यह रोग प्राय: उन स्त्रियों को होता है जो अधिक कमजोर होती हैं। इस रोग के कारण स्त्रियों के प्रसव (बच्चा जन्म देने) के बाद आंवल (आंवर) देर से गिरता है। यदि किसी स्त्री को यह अवस्था हो जाए तो कभी भी आंवल को खीचा-तानी करके बाहर नहीं निकालना चाहिए।
चिकित्सा : 1. गूलर : 20 ग्राम गूलर की छाल को चावल के धोवन के साथ पीसकर पिलाने से नाल (खेड़ी, अपरा) तुरंत बाहर निकल जाती है।
