vastu upayon se karen tanav ka nidan

वास्तु उपायों से करें तनाव का निदान – वास्तु और स्वास्थ्य – vastu upayon se karen tanav ka nidan – vastu aur swasthya

प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करे। इसके लिए वह जी तोड़ मेहनत करता है। अपनी खून-पसीने की कमाई से अपने लिए घरौंदा बनाता है। यह घरौंदा सिर्फ उसका निवास स्थान नहीं होता, बल्कि उसका वह सपना होता है, जो हमेशा से उसकी आंखों में पल रहा होता है। घर बनाने के लिए वह क्या-क्या जतन नहीं करता। लोगों से परामर्श करता है, आर्किटेक्चर को बुलाकर नक्‍शा बनवाता है और तदनुरूप निर्माण करवाता है। उसके सपनों का घर, उसके लिए सौभाग्यशाली भी हो, इसके लिए उसे चाहिए कि वह घर बनाने के लिए स्थान का चयन और घर निर्माण कुशल वास्तु विशेषज्ञ की सलाह पर वास्तु नियमों के अनुसार करे।

यूं तो वास्तु ने सभी दस दिशाओं को महत्वपूर्ण माना है, लेकिन उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम को विशेष अहमियत दी जाती है। कुछ इसी प्रकार जिस तरह मानव शरीर में हर अंग का अपना महत्व होते हुए भी सिर, जहां मस्तिद्गक का वास होता है और जो पूरे शरीर को संचालित करता है तथा पैर, जो कि शरीर का आधार होते हैं, को विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे ही उत्तर-पूर्व दिशा वास्तु पुरुष का सिर एवं दक्षिण-पश्चिम पांव हैं। इन दोनों में से किसी भी दिशा में वास्तु दोष होने का मतलब है गृहस्वामी सहित परिवार के अन्य सदस्यों को मानसिक तनाव होना। इस स्थिति से बचने के लिए हमें निम्न बातों का खयाल रखना चाहिएः-
घर का उत्तर-पूर्वी कोना कटा हुआ न हो। यह आपकी आर्थिक उन्नति को बाधित करता है और नुकसान का कारण भी बनता है।
उत्तर-पूर्वी कोना गोलाकार न बना हो।
उत्तर-पूर्व में बना द्गाौचालय बीमारियों को आमंत्रित करता है।
उत्तर-पूर्व में अगर नव दंपती के लिए द्गायन कक्ष बनाया जाए तो वह परिवार की वंश वृद्धि को रोक सकता है। इस दिशा में बने शयन कक्ष नव दंपती को शारीरिक व मानसिक रूप से अक्षम बना सकता है।
उत्तर-पूर्व में बनायी गयी सीढियां भारी आर्थिक व शारीरिक क्षति का कारण बनती हैं। इसके कारण गृहस्वामी कर्ज में डूब सकता है।
उत्तर-पूर्व में रसोईघर नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में बना रसोईघर मानसिक पीडा का कारण बनता है। यह अनावश्यक खर्च भी बढाता है।
उत्तर-पूर्व में आप पूजा-स्थल बना सकते हैं।
पूर्व दिशा अध्ययन कक्ष के लिए उत्तम रहती है।
घर का उत्तर-पूर्व भाग खुला व स्वच्छ रखा जाए तो परिवार को हर प्रकार से संपन्नता व शौहरत हासिल होती है।
उत्ततर-पूर्व में पीने का पानी का घड़ा आदी रखा जा सकता है। इस भाग में हैंडपम्प लगाना, भूमिगत जलाशय होना अर्थात बहते हुए पानी का स्रोत होना परिवार के लिए समृद्धि का कारण बनता है।
घर का मुख अगर उत्तर-पूर्व दिशा में हो तो वह शुभ होता है।
तुलसी के पौधे को उत्तर-पूर्व भाग में लगाया जा सकता है। इस दिशा में छोटे व फूल वाले पौधे लगाए जा सकते हैं।
उत्तर-पूर्वी भाग का विस्तार किया जाना वंश वृद्धि में सहायक होता है। यह सुख और समृद्धि भी दिलाता है।
अगर बेसमेंट का निर्माण करना हो तो उसके लिए उत्तर-पूर्व भाग सर्वोत्‍तम है।
जितना महत्व उत्तर-पूर्व दिशा का है, उतनी ही महत्वपूर्ण दक्षिण-पश्चिम दिशा भी है। आइए, जानते हैं।
दक्षिण-पश्चिम में गृहस्वामी का द्गायन कक्ष होना चाहिए।
यह दिशा सीढियों के लिए सर्वोत्तम होती है।
दक्षिण-पश्चिम कोना घर के अन्य हिस्सों से ऊंचा, भारी और ९० डिग्री के कोन पर होना चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम में पूजा-स्थल और ड्राइंगरूम का न बनाएं।
दक्षिण-पद्गिचम में बाथरूम या शौचालय न हो। इस दिद्गाा में ढलान या गड्‌ढा इत्यादि नहीं होना चाहिए।
दक्षिण-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष सीधे गृहस्वामी को प्रभावित करता है। उसे कष्टप्रद स्थितियों से गुजरना पड सकता है।
बात चाहे घर की हो या फैक्टरी की दक्षिण-पश्चिम भाग में कर्मचारियों के रहने का प्रबंध न करें।

वास्तु उपायों से करें तनाव का निदान – vastu upayon se karen tanav ka nidan – वास्तु और स्वास्थ्य – vastu aur swasthya

 

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