ishan kon ko khaalee rakhna vaidik bhee hai aur vaigyanik bhee

ईशान कोण को खाली रखना वैदिक भी है और वैज्ञानिक भी – वैदिक वास्तु शास्त्र – ishan kon ko khaalee rakhna vaidik bhee hai aur vaigyanik bhee – vedic vastu shastra

हमारे ऋषि मुनि महान वैज्ञानिक थे! उनका वैज्ञानिक ज्ञान हमारे वैज्ञानिक ज्ञान की तुलना में ब्रह्मांडीय अनुपात रखता था! उन्होंने संभ्रागन सूत्रधार, मायामतम, स्थापत्य वेद, मनसा आदि में जो कुछ कहा है वह सत्य है! आवश्यकता केवल उस सत्य को आज के परिप्रेक्ष्य में ढालने की है!
पुराने जमाने में घरों में न शिवालय होते थे और न ही शौचालय! परंतु इसका यह मतलब तो नहीं कि उनकी आवश्यकता नहीं थी! आज प्रत्येक घर में मंदिर है और प्रत्येक कमरे में शौचालय! हम बचपन में पोस्टकार्ड पर लिखा करते थे तो क्या आज अपने बच्चे को ईमेल करने से मना कर दें! तात्पर्य यह कि प्राचीन मान्यताओं को आधुनिक कसौटी पर कसना होगा! यहां हम केवल एक उदाहरण लेते हैं- ईशान कोण का खुला होना! इसी उदाहरण की हम वैज्ञानिक और वैदिक स्तर पर व्याख्या करेंगे!

वैदिक मान्यताएं:

वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी भवन में उत्तर-पूर्व में खुली जगह होनी चाहिए! शायद यही कारण रहा हो कि हमें बताया गया कि उत्तर-पूर्व में प्रवेश द्वार सर्वोत्तम होता है! प्रवेश द्वार उत्तर में भी अच्छा माना जाता है और पूर्व में भी! वैदिक वास्तु के अनुसार उत्तर की दिशा को कुबेर देवता नियंत्रित करते हैं और पूर्व की दिशा को सूर्य देवता!
वैदिक वास्तु में यह भी बताया गया है कि उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा जिसे उत्तर-पूर्व दिशा कहते हैं, अत्यंत लाभकारी है! इस दिशा का वास्तु नाम ईशान कोण है! ईशान कोण का क्षेत्र 45 डिग्री का है! इस दिशा में उत्तर दिशा के गुण भी हैं और पूर्व दिशा के गुण भी! इस दिशा को नियंत्रित करने वाले शिव भगवान है! दरअसल ईशान शिव के नाम का पर्यायवाची है! अतः ईशान कोण को पवित्र माना गया है और शायद इसी कारण हमें बताया गया कि मंदिर ईशान कोण में होना चाहिए और ईशान कोण को खुला भी रखना चाहिए! ईशान कोण को खुला रखने के लिए पुराने समय में प्रवेश द्वार की स्थापना बताई गई!

ईशान कोण को खाली रखना वैदिक भी है और वैज्ञानिक भी – ishan kon ko khaalee rakhna vaidik bhee hai aur vaigyanik bhee – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra

 

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