karyasthal ka vastu sutra

कार्यस्थल के वास्तु सूत्र – वैदिक वास्तु शास्त्र – karyasthal ka vastu sutra – vedic vastu shastra

वास्तु शास्त्र के शास्त्रसम्मत सूत्रों के अनुरूप केवल घर को निर्मित करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि आजीविका के लिए आधारभूत कार्यालय, या दुकान इत्यादि भी शुभ लक्षणों से युक्त होने चाहिए और उसके अन्दर उपकरणों को यथास्थान कैसे सजाना है, या किस दिशा की ओर मुँह करके आसीन होना है, इत्यादि बातों की जानकारी भी आवश्यक है.

दक्षिणमुखी कार्यस्थल:- दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर फर्श ढलवां बना कर नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम कोण) में पूर्वाभिमुख हो, बैठने पर दायीं ओर तिजोरी/कैश बाक्स को रखना चाहिए. उसी स्थान पर उत्तराभिमुख होकर आसीन(Sitting) होने पर कैश बाक्स हमेशा बाईं ओर रखना चाहिए. दक्षिण दिशा के कार्यस्थल में कभी भी आग्नेय(South-East), वायव्य(North-West) और ईशान(North-East) दिशाओं में बैठकर व्यापार नहीं करना चाहिए अन्यथा व्यापार में उधार वगैरह दिया गया पैसा डूबने लगता है.

पश्चिम दिशामुखी कार्यस्थल:- पश्चिम से पूर्व की ओर, दक्षिण से उत्तरी दिशा में फर्श को ढलवां बनाकर नैऋत्य(South-West) में अपना आसन(siting) रख, बाईं ओर तिजोरी/ कैश बाक्स को रखना चाहिए. इस दिशा के व्यापारिक स्थल में कभी वायव्य, ईशान और आग्नेय की ओर नहीं बैठना चाहिए अन्यथा सावन में हरे और भादों में सूखे वाली स्थिति सदैव बनी रहेगी अर्थात व्यापार में एकरूपता नहीं रहेगी.

उत्तर दिशामुखी कार्यस्थल:- फर्श उत्तर से दक्षिण की ओर,पश्चिम से पूर्व की ओर ढलवां रखना चाहिए. वायव्य कोण(North-West) की उत्तरी दीवार को स्पर्श किए बिना यानि उस दीवार से थोडी दूरी रख, आसन रखना चाहिए. पूर्वाभिमुखी आसीन होने पर कैश बाक्स सदैव दाहिनी दिशा में रखें. यदि संभव हो तो नैऋत्य कोण में अपनी टेबल लगाएं, लेकिन ईशान या आग्नेय कोण में कभी भूलकर भी सिटिंग न रखें.

पूर्व दिशाभिमुख कार्यस्थल:- द्वार यदि पूर्व में हो तो पश्चिम से पूर्व की ओर तथा दक्षिण से उत्तर की ओर फर्श को ढलानदार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए. व्यापारी को आग्नेय(South-East) या पूर्वी दीवार की सीमा का स्पर्श किए बिना, दक्षिण आग्नेय की दीवार से सट कर, उत्तर दिशा की ओर ही मुख करके अपनी सिटिंग रखनी चाहिए और कैश बाक्स हमेशा दायीं तरफ रखें. उसी स्थल पर सिटिंग पूर्वाभिमुख होकर भी की जा सकती हैं किन्तु ईशान अथवा वायव्य दिशा की ओर नहीं होनी चाहिए.

कार्यस्थल की शुभता हेतु :-

1. कार्यस्थल का ब्रह्म स्थान (केन्द्र स्थान) हमेशा खाली रखना चाहिए. ब्रह्म स्थान में कोई खंबा, स्तंभ, कील आदि नहीं लगाना चाहिए.
2. कार्यस्थल पर यदि प्रतीक्षा स्थल बनाना हो, तो सदैव वायव्य कोणे में ही बनाना चाहिए.
3. अपनी पीठ के पीछे कोई खुली खिडकी अथवा दरवाजा नहीं होना चाहिए.
4. विद्युत का सामान, मोटर, स्विच, जैनरेटर, ट्रासंफार्मर, धुंए की चिमनी इत्यादि को अग्नि कोण अथवा दक्षिण दिशा में रखना चाहिए.
5. कम्पयूटर हमेशा अग्नि कोण अथवा पूर्व दिशा में रखें.
6. बिक्री का सामान या जो सामान बिक नहीं रहा हो तो उसे वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम दिशा में रखें तो शीघ्र बिकेगा.
7. सजावट इत्यादि हेतु कभी भी कांटेदार पौधे, जैसे कैक्टस इत्यादि नहीं लगाने चाहिए.
8. यदि किसी को चलते हुए व्यवसाय में अचानक से अनावश्यक विघ्न बाधाएं, हानि, परेशानी का सामना करना पड रहा हो तो उसके लिए कार्यस्थल के मुख्य द्वार की अन्दर की ओर अशोक वृ्क्ष के 9 पत्ते कच्चे सूत में बाँधकर बंदनवार के जैसे बाँध दें. पत्ते सूखने पर उसे बदलते रहें तो नुक्सान थम जाएगा और व्यवसाय पूर्ववत चलने लगेगा.

कार्यस्थल के वास्तु सूत्र – karyasthal ka vastu sutra – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra

 

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