manav jeevan mein vashtushastr ka mahatva

मानव जीवन में वास्तुशास्त्र का महत्व – वैदिक वास्तु शास्त्र – manav jeevan mein vashtushastr ka mahatva – vedic vastu shastra

मानव जीवन में वास्तुशास्त्र का बहुत महत्व है! यह इतना विस्तृत है कि इसे कोर्इ भी व्यकित पूरी तरह से अपने जीवन में अपना नहीं सकता लेकिन कुछ बातें हैं जिन्हें अपनाकर अपने जीवन को बेहतर और सुखी बनाया जा सकता है!

वास्तुशास्त्र के अनुसार मकान का निर्माण करते समय सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जिस जमीन पर मकान बनाने जा रहे हैं वह प्लाट चौकोर या आयताकार हो! प्लाट शेरमुखी अर्थात आगे चौड़ा और पीछे सकरा न हो! यह गौमुखी हो सकता है अर्थात आगे सकरा और पीछे चौड़ा! उसका कोर्इ कोना कटा न हो!

हिन्दू धर्मशास्त्र में दश दिशाएं होती हैं चार दिशाएं चार कोण और ऊपर तथा नीचे! इनका खास खयाल मकान का निर्माण करते समय रखना चाहिए पूर्व-उत्तर दिशा अर्थात र्इशान कोण में चूंकि र्इश्वर का वास होता है अत: उस दिशा में घर में मनिदर अवश्य बनाना चाहिए लेकिन घर के मनिदर में किसी देवी देवता की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होनी चाहिए! र्इशान कोण में ड्राइंग रुम का निर्माण किया जा सकता है! र्इशान कोण और पूर्व दिशा नीची होनी चाहिए! इसे हल्का और साफ सुथरा रखना चाहिए! इस दिशा में स्नानागार बनाना उत्तम रहता है किन्तु इस दिशा में लैनिट्रन रुम का निर्माण कदापि नहीं होना चाहिए! यदि गलती से ऐसा हो गया हो तो उसे बदलना ही सर्वथा हितकारी हो सकता है! र्इशान कोण और पूर्व उत्तर दिशा को ज्यादा से ज्यादा खुला रखना चाहिए! र्इशान कोण में यदि पानी की बोरिंग या अण्डर ग्राउन्ड जल का स्थान हो तो सोन पे सुहागा का काम करेगा!

उत्तर पशिचम दिशा अर्थात वायव्य कोण में अतिथि कक्ष बनाना ठीक रहता है, उसे लड़कियों के रहने के लिए भी उपयुक्त माना जाता है! घर के खिड़कियाँ और दरवाजे अधिकतर पूरब और उत्तर दिशा में होना चाहिए, पशिचम और दक्षिण दिशा में जरुरत पड़ने पर ही खोलें अन्यथा नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश करती है! घर की सीढि़यां उन्नति का द्वार होती हैं अत: उसे पशिचम दिशा में दाहिने घूमते हुए ऊपर जाकर पूर्व दिशा में छत पर खुलनी चाहिए! सीढि़यों की संख्या सम ने होकर विषम में होनी चाहिए! पानी की टंकी पशिचम, उत्तर या पूर्व में हो सकती है!

नैक्टल कोण अर्थात पशिचम दक्षिण की दिशा में घर के मुखिया का शयन कक्ष होना चाहिए! शयन कक्ष में मनिदर कभी न बनावें यदि मजबूरी में बनाना पड़े तो उसे परदे से रात्रि में ढक दें! शयन कक्ष में बेड के सामने दर्पण न हो! बेड बरवाजे के बिलकुल सीध में नहीं होना चाहिए! घर की तिजोरी दक्षिण दिशा में रखें जो ऊपर उत्तर की ओर खुलती हो! सोते समय सिर पूरब या दक्षिण की तरफ होना चाहिए! कभी भी पैर दक्षिण की तरफ नहीं होना चाहिए!

आग्नेय कोण अर्थात दक्षिण पूर्व की दिशा में रसोर्इ घर बनाना अति उत्तम होता है! रसोर्इघर का दरवाजा हमेशा उत्तर या पूर्व में होना चाहिए! खाना हमेशा उसी दिशा में परोसकर निकालें! इससे घर के लोगों की सेहत ठीक रहती है! इलेकिट्रानिक सामान और मेन सिवच बोर्ड आग्नेय कोण में ही रखें!

नैक्टत्य कोण हमेशा ऊँचा रखें! पानी का बहाव हमेशा उत्तर पूर्व की तरफ हा! सीवर लाइन या सेफिटंग टैंक पशिचम दिशा में ही बनायें! मकान का मधा भाग ब्रहम स्थान कहलाता है अत: इसे हमेशा खुला और खाली होना चाहिए! इस स्थान पर कोर्इ वस्तु नहीं रखनी चाहिए! इस जगह पर कोर्इ खम्भा आदि न बनायें!

मुख्य द्वार के सामने कोर्इ बड़ा पेड़ या बिजली का खम्भा आदि नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे द्वार वेध का दोश होता है जो उन्नति के मार्ग में बाधक होता है!

घर के लान में कांटेदार और दूधवाले पौधे नहीं होने चाहिए! घर के अन्दर हमेशा ऐसे चित्र, पोस्टर या सीनरी लगावें जो जीवन्त हो अर्थात जिसमें जीवन का विस्तार दिखार्इ दे! जैसे उगते सूरज का चित्र आदि!

घर में किसी भी हिंसक जानवरों का चित्र और मूर्तियां आदि न रखें इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है! इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखने से हम अपने जीवन में खुशियां ला सकते हैं! किन्तु घर के रहवासी अपने आचार-विचार और रहन-सहन में शुद्धता रखें तभी वास्तुशास्त्र सही रूप में फलित होगा अन्यथा सौ फीसदी वास्तुशास्त्र सम्मत घर बनवा लेने से भी खुशियां नहीं आ पाएंगी!

मानव जीवन में वास्तुशास्त्र का महत्व – manav jeevan mein vashtushastr ka mahatva – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra

 

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