vaidik vaastushaastr- dishaon aur konon ka vigyaan

वैदिक वास्तुशास्त्र- दिशाओं और कोणों का विज्ञान – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaidik vaastushaastr- dishaon aur konon ka vigyaan – vedic vastu shastra

आज किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है, क्योंकि लोगों में अपने घर या कार्यालय को वास्तु के अनुसार बनाने की सोच बढ़ रही है! यही वजह है कि पिछले करीब एक दशक से वास्तुशास्त्री की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है!

वास्तु ऐसा विषय है, जिस पर पुरातन काल से ही विचार और विश्वास किया जाता रहा है! सभ्यताओं के बसने-उजड़ने के साथ-साथ इस शास्त्र पर भी असर पड़ा, लेकिन इसका महत्व, इसकी प्रामाणिकता इसके अनुसार भवन निर्माण से होने वाले फायदों से सिद्घ होती है! हालांकि दो-तीन दशक पहले वास्तु की ओर लोगों का रुझान कम हो गया था, बावजूद इसके आज फिर से वास्तु के क्षेत्र में अवसरों की भरमार है! आजकल भवन केवल प्राकृतिक आपदाओं से बचने का साधन मात्र नहीं, बल्कि वे आनंद, शांति, सुख-सुविधाओं और शारीरिक तथा मानसिक कष्ट से मुक्ति का साधन भी माने जाते हैं! पर यह तभी संभव होता है, जब हमारा घर या व्यवसाय का स्थान प्रकृति के अनुकूल हो! भवन निर्माण की इस अनुकूलता के लिए ही हम वास्तुशास्त्र का प्रयोग करते हैं और इसके जानकारों को वास्तुशास्त्री कहते हैं!

इमारत, फार्म हाउस, मंदिर, मल्टीप्लेक्स मॉल, छोटा-बड़ा घर, भवन, दुकान कुछ भी हो, उसका वास्तु के अनुसार बना होना जरूरी है, क्योंकि आजकल सभी सुख-शांति और शारीरिक कष्टों से छुटकारा चाहते हैं! इस सबके लिए किस दिशा या कौन से कोण में क्या होना चाहिए, इस तरह के विचार की जरूरत पड़ती है और यह विचार ही वास्तु विचार कहलाता है! किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है!
एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में वास्तुशास्त्र का महत्व बढ़ रहा है, जिसकी बढ़ोतरी करीब 10 प्रतिशत वार्षिक के करीब है! सर्वे के मुताबिक, करीब तीस प्रतिशत मकान और करीब 20 प्रतिशत व्यावसायिक केंद्र वास्तु के आधार पर बने हुए हैं, जबकि एक प्रतिशत वे भवन हैं, जो फेंग्शुई के आधार पर बने हैं! अत: हम कह सकते हैं कि वास्तुशास्त्र का भविष्य काफी उज्जवल है!

कार्य संस्कृति
एक वास्तुशास्त्री का कार्य घर की सुख-समृद्घि को ध्यान में रखने के अलावा प्रकृति के अनुरूप भवन या घर का निर्माण करने की सलाह देना है! इसमें वह कोण और दिशाओं के अनुसार भवन में पूजा-स्थल, रसोईघर, स्नानघर यानी बाथरूम, टॉयलेट, कोषागार, बेडरूम, उसका द्वार और स्टडी रूम को सही जगह पर बनवाने की सलाह देता है!

जगह का चुनाव
यूं तो एक वास्तुशास्त्री को जगह की जरूरत नहीं होती, वह घर से ही अपने काम को अंजाम दे सकता है, लेकिन आज के मार्केटिंग के दौर में अगर वास्तुशास्त्री के पास अपना बैठने का स्थान हो तो काम और अच्छा चल सकता है! इसके लिए एक छोटी-सा ऑफिस भी काफी होगा! हां, इस काम में ऑफिस से ज्यादा जरूरी है प्रचार-प्रसार, क्योंकि वास्तुशास्त्री के बारे में जितने ज्यादा लोग जानेंगे, काम उतना ही अधिक फले-फूलेगा!

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