वास्तु कला दो प्रकार की होती है-
उत्तर भारतीय वास्तुशास्त्र एवं दक्षिण भारतीय वास्तुशास्त्र! वर्तमान में दोनों का मिश्रण चल रहा है! भारतीय वास्तुशास्त्र का आधार देवता एवं पंच तत्व यथा आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी है!
भारतीय वास्तुशास्त्रानुसार भूमि खरीदने से पहले भूमि परीक्षण, भूमि पूजन, नींव पूजन, भवन पूरा होने पर गृह प्रवेश-पूजन आदि करवाना अनिवार्य है! वास्तुशास्त्र वस्तुत: व्यवस्थित भवन बनाने की कला है जिससे व्यक्ति देवताओं को प्रसन्न रखते हुए पंच तत्व व सूर्य का पूर्णतया लाभ पाता रहे!
पंच तत्व वस्तुत: प्रकृति का ही एक अद्भुत स्वरूप है! यह अद्भुत और जीवनदायिनी शक्ति का ही पर्याय है!
1. आकाश- जिसे हम अंतरिक्ष कहते हैं जिसमें कई ग्रहों, प्रकाश, गर्मी, चुम्बकीय प्रभाव आदि का समावेश है! आकाश ध्वनि (नाद) से भी संबंधित है!
2. वायु- ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाई ऑक्साइड, हीलियम आदि गैसों का मिश्रण है! पृथ्वी पर चल-अचल, सजीव-निर्जीव इसी पर निर्भर है! यह शब्द से संबंधित है!
3 अग्नि- यह ऊर्जा, प्रकाश, ताप का प्रतिनिधित्व करती है तथा विशेष रूप, आकार, देखना आदि से संबंधित है!
4.पृथ्वी- यह अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है! इसके दो केंद्र उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव हैं! यह अपनी धुरी पर, अंश पर झुकी है!
5. जल- पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग जल से प्लावित है तथा एक-चौथाई भाग भूमि है! सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में पृथ्वी 365 दिन लगाती है! दिन और रात इसका प्रमुख आकर्षण हैं! यह विशेष गुण, गंध, तत्व से संबंधित हैं!
वास्तुकला क्या है, जानिए प्रकार – vastu kala kya hai, jaane prakar – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra