duddhara yoga

दुर्धरा योग – वैदिक ज्योतिष शास्त्र | Duddhara Yoga – vaidik jyotish Shastra

 

वैदिक ज्योतिष में दुर्धरा योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा से पिछले घर में तथा चन्द्रमा से अगले घर में कोई ग्रह स्थित हो तो कुंडली में दुर्धरा योग बनता है जो जातक को शारीरिक सुंदरता, स्वास्थ्य, संपत्ति तथा समृद्धि प्रदान कर सकता है। कुछ ज्योतिषी यह मानते हैं कि इस योग की गणना के लिए सूर्य का विचार नहीं किया जाता जिसका अर्थ यह है कि किसी कुंडली में केवल सूर्य के ही चन्द्रमा से पिछले अथवा अगले घर में स्थित होने पर कुंडली में दुर्धरा योग नहीं बनता तथा ऐसी स्थिति में सूर्य के साथ कोई और ग्रह भी उपस्थित होना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि किसी कुंडली के चौथे घर में चन्द्रमा स्थित हैं तथा कुंडली के तीसरे घर में सूर्य के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह स्थित है तथा कुंडली के पांचवे ग्रह में भी सूर्य के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह स्थित है तो कुंडली में दुर्धरा योग बनता है। अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार दुर्धरा योग बहुत सी कुंडलियों में बन जाता है किन्तु इनमें से बहुत से जातकों को इस योग के शुभ फल प्राप्त नहीं होते जिसके चलते इस योग के किसी कुंडली में बनने के लिए कुछ अन्य तथ्यों पर भी विचार करना आवश्यक है।

► सुनफा योग की भांति ही दुर्धरा योग
सुनफा योग की भांति ही दुर्धरा योग के किसी कुंडली में निर्माण के लिए भी कुंडली में चन्द्रमा तथा चन्द्रमा से अगले तथा पिछले घर में स्थित ग्रहों का शुभ होना आवश्यक है क्योंकि चन्द्रमा के कुंडली में अशुभ होने से दुर्धरा योग बनेगा ही नहीं जबकि इस योग के निर्माण में शामिल अन्य ग्रहों के अशुभ होने से इस योग के फल कम अथवा बहुत कम हो जाएंगे। इसके अतिरिक्त कुंडली में चन्द्रमा पर किसी भी अशुभ ग्रह का स्थिति अथवा दृष्टि के माध्यम से अशुभ प्रभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि चन्द्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली में बनने वाले दुर्धरा योग के शुभ फलों को कम अथवा बहुत कम कर सकता है। कुंडली में बनने वाले दुर्धरा योग के बारे में फलादेश करने से पहले कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति तथा बल भी देख लेना चाहिए क्योंकि सुनफा योग की भांति ही दुर्धरा योग के शुभ फलों में भी चन्द्रमा के बल तथा स्थिति के आधार पर बहुत अंतर आ सकता है।

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