जब सूर्य और चन्द्रमा दोनों कुण्डली के एक ही घर में विराजित हो जावे तब इस दोष का निर्माण होता है। जैसे की आप सब जानते है की अमावस्या को चन्द्रमा किसी को दिखाई नही देता उसका प्रभाव क्षीण हो जाता है। ठीक उसी प्रकार किसी जातक की कुंडली में यह दोष बन रहा हो तो उसका चन्द्रमा प्रभावशाली नही रहता। और चन्द्रमा को ज्योतिष में कुण्डली का प्राण माना जाता है और जब चन्द्रमा ही प्रभाव हीन हो जाए तो यह किसी भी जातक के लिए कष्टकारी हो जाता है क्योंकि यही हमारे मन और मस्तिक्ष का करक ग्रह है।
इसलिए अमावस्या दोष को महर्षि पराशर जी ने बहुत बुरे योगो में से एक माना है, जिसकी व्याख्या उन्होंने अपने ग्रन्थ बृहत पराशर होराशास्त्र में बड़े विस्तार से की है तथा उसके उपाय बताये है। जोकि में आगे अपने ब्लॉग पर कुछ समय बाद प्रकाशित करूँगा। ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि सूर्य और चन्द्र दो भिन्न तत्व के ग्रह है सूर्य अग्नि तत्व और चन्द्र जल तत्त्व, इस प्रकार जब दोनों मिल जाते है तो वाष्प बन जाती है कुछ भी शेष नही रह जाता।