कुंडली बनाकर जातक के जीवन के प्रति विवेचन करने के लिये जो विधियां वैदिक रीति से प्रयोग में लायी जाती है उनके अनुसार लहरी पद्धति का प्रयोग किया जाता है। सायन पद्धति को पाश्चात्य पद्धति के नाम से जाना जाता है और सूर्य को मुख्य ग्रह मानकर फ़ला देश किया जाता है जो लहरी पद्धति से एक भाव आगे रहने के लिये माना जाता है। लहरी पद्धति में आधान लगन को माना जाता है,जैसे किसी ने अपने जन्म समय को दिया तो उस समय से लहरी पद्धति में जन्म कुंडली बनाने के समय जिस समय जातक का माता के गर्भ में आना होता है उस समय का रूप सामने आ जाता है और उस समय के ग्रहों को सामने रखकर कर भावानुसार विवेचन किया जाता है। प्रश्न कुंडली में केवल सायन पद्धति ही काम आती है और वर्तमान में चलने वाले मुहूर्त आदि के लिये चिन्ता के करने का समय भी मुख्य माना जाता है।
– जातक का जन्म होते ही जब वह पहली सांस लेता है उसी समय से गुरु की स्थापना हो जाती है,क्योंकि गुरु ही जीवन का कारक है।
– उस समय के सूर्य के लिये जो कारक मुख्य रूप से सामने आता है वह आत्मीयता के कारणों को पैदा करता है जैसे पिता के लिये पुत्र या पुत्री माता के लिये भी समान बात मानी जाती है उसके अलावा भाई के लिये भाई या बहिन और उसी प्रकार से दादा के लिये पोती या पोता तथा नाना के लिये नाती या नातिन का भाव सामने आते ही सूर्य की स्थापना हो जाती है।
– चन्द्रमा की स्थापना जातक के मन के अनुसार और माता के कारणों को प्रस्तुत करने का रूप माना जाता है और माता की कृपा तथा माता के द्वारा जिस भाव से और जिन कारकों को सामने रखकर सन्तान को पाला जाता है जो भाव माता के ह्रदय में जातक के गर्भ काल में चला करते है वही कारण और कारक जातक के मन मस्तिष्क में आजीवन चलते रहते है इसलिये जातक के नाम करण के लिये चन्द्रमा का प्रयोग किया जाता है और माता को मुख्य कारक के रूप में सामने रखा जाता है।
– मंगल का रूप जातक की शक्ति के लिये प्रयोग किया जाता है कि कितना बडा पराक्रम लेकर पैदा हुआ है और किस प्रकार की शक्ति से विभूषित है,तथा जीवन के किस प्रकार के क्षेत्र में अपनी रुचि रखकर किस शक्ति से किस प्रकार का विकास करेगा और किस प्रकार से कारणों और कारकों का नाश करेगा।
– बुध के द्वारा जातक के परिवेश के अनुसार भाषा बोलचाल और शरीर के प्रति बनावट जैसे काला या गोरा बोना या लम्बा मोटा या पतला रूप विवेचन में लाया जाता है।
– गुरु को जीव के रूप में माना जाता है और विवेचन के समय गुरु का बहुत ही ध्यान रखा जाता है कि वह किस भाव से किस राशि के अनुसार अपनी भावनाये और व्यक्तित्व रखता है तथा किस प्रकार के सम्बन्ध और शिक्षा आदि के क्षेत्र मे अपने को आगे ले जायेगा।
– शुक्र के द्वारा शारीरिक सुन्दरता को देखा जाता है कि समाज में वह किस बनावट और रूप से पहिचाना जायेगा और वह पुरुष है तो किस प्रकार की स्त्री उसके जीवन में अपना योगदान देगी और स्त्री है तो वह कितनी सुन्दर होगी और उस सुन्दरता के कारण किस प्रकृति के लोग उसकी तरफ़ आकर्षित होंगे।
– शनि के द्वारा देखा जाता है कि जातक के अन्दर कितनी शक्ति अपने शरीर की रक्षा करने के लिये है और किस प्रकार की रक्षा प्रणाली को अपने रहने वाले क्षेत्र के साथ कार्य करने वाले क्षेत्र में और जीवन की कमियों को पूरा करने के लिये किस प्रकार के कार्य करने के लिये वह अपनी शक्ति को रखता है साथ ही उसके अन्दर अपने बचाव और सम्बन्धित कारकों की रक्षा के लिये कितना बल है आदि देखना पडता है।
– राहु के द्वारा जातक के प्रति चिन्ताओं का कारण देखना पडता है जातक किस प्रकार से चिन्ता करने के बाद उन चिन्ताओं के अनुसार अपने जीवन को आगे पीछे ले जाने अपने कारकों की रक्षा करने या अपने जीवन को समाप्त करने या बढाने के प्रति अपनी भावनाओं को रखेगा,कितने समय वह सोच सकता है और उन सोचों के अनुसार किस प्रकार से कार्य कर सकता है या केवल सोच कर ही अपने जीवन को निकाल सकता है आदि बातें राहु से देखी जाती है।
– केतु का प्रभाव जरूरतों को उत्पन्न करने से माना जाता है जातक के जीवन में हमेशा के लिये किन जरूरतों को पूरा करने के लिये वह अपनी शक्ति को प्रयोग करने के लिये हमेशा उद्धत रहेगा उसके पास कौन सी जरूरते हमेशा रहेंगी जिनके के लिये वह समय के अनुसार अपनी शक्ति को खर्च करता रहेगा,जरूरत के साधनों का नाम भी केतु से जोड कर देखा जाता है।