kundalee ka chautha bhaav - kundalee dekhane ke niyam

कुंडली का चौथा भाव – कुंडली देखने के नियम – तेरहवां दिन – Day 13 – 21 Din me kundli padhna sikhe – kundalee ka chautha bhaav – kundalee dekhane ke niyam – Terahavaan Din

कुंडली के चौथे भाव को वैदिक ज्योतिष में मातृ भाव तथा सुख स्थान भी कहा जाता है, यह भाव जातक के जीवन में माता की ओर से मिलने वाले योगदान तथा जातक के द्वारा किए जाने वाले सुखों के भोग को दर्शाता है। चौथा भाव कुंडली का एक महत्त्वपूर्ण भाव है तथा किसी भी क्रूर ग्रह का चौथे घर अथवा चन्द्रमा पर अशुभ प्रभाव कुंडली में मातृ दोष बना देता है। किसी व्यक्ति के जीवन में उसकी माता की ओर से मिले योगदान तथा प्रभाव को देखने के लिए तथा माता के साथ संबंध और माता का सुख देखने के लिए कुंडली के इस घर का ध्यानपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है।

कुंडली का चौथा भाव व्यक्ति के ज़ीवन में मिलने वाले सुख, खुशियों, सुविधाओं, तथा उसके घर के अंदर के वातावरण अर्थात घर के अन्य सदस्यों के साथ उसके संबंधों को भी दर्शाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में वाहन-सुख, नौकरों-चाकरों का सुख, उसके अपने मकान बनने या खरीदने को भी कुंडली के इस भाव से देखा जाता है। कुंडली में चौथे भाव के बलवान होने से तथा किसी अच्छे ग्रह के प्रभाव में होने से कुंडली धारक को अपने जीवन काल में अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं तथा ऐश्वर्यों का भोग करने को मिलता है तथा उसे बढिया वाहनों का सुख तथा नए मकान प्राप्त होने का सुख़ भी मिलता है। दूसरी ओर कुंडली के चौथे भाव के बलहीन होने की स्थिति में जातक के जीवनकाल में सुख-सुविधाओं का आम तौर पर अभाव ही रहता है। कुंडली का चौथा भाव शरीर के अंगों में छाती, फेफड़ों, हृदय तथा इसके आस-पास के अंगों को दर्शाता है तथा इस भाव पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव कुंडली धारक को छाती, फेफड़ों तथा हृदय से संबंधित रोगों से पीड़ित कर सकता है तथा इसके अतिरिक्त जाताक की मानसिक शांति पर बुरा प्रभाव डाल सकता है।

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