kundalee ka pahala bhaav - kundalee dekhane ke niyam

कुंडली का पहला भाग – कुंडली देखने के नियम – तेरहवां दिन – Day 13 – 21 Din me kundli padhna sikhe – kundalee ka pahala bhaav – kundalee dekhane ke niyam – Terahavaan Din

वैदिक ज्योतिष में कुंडली के पहले भाव को लग्न कहा जाता है तथा वैदिक ज्योतिष के अनुसार इसे कुंडली के बारह घरों में सबसे महत्त्वपूर्ण घर माना जाता है। किसी भी व्यक्ति विशेष के जन्म के समय उसके जन्म स्थान पर आकाश में उदित राशि को उस व्यक्ति का लग्न माना जाता है तथा इस राशि अर्थात लग्न को उस व्यक्ति की कुंडली बनाते समय पहले घर में स्थान दिया जाता है तथा इसके बाद आने वाली राशियों को कुंडली में क्रमश: दूसरे, तीसरे — बारहवें घर में स्थान दिया जाता है।

किसी भी कुंडली में लग्न स्थान अथवा पहले भाव का महत्त्व सबसे अधिक होता है तथा जातक के जीवन के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में इस भाव का प्रभाव पाया जाता है। जातक के स्वभाव तथा चरित्र के बारे में जानने के लिए पहला भाव विशेष महत्त्व रखता है तथा इस भाव से जातक की आयु, स्वास्थ्य, सामाजिक प्रतिष्ठा तथा अन्य कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के बारे में पता चलता है। कुंडली का पहला भाव शरीर के अंगों में सिर, मस्तिष्क तथा इसके आस-पास के हिस्सों को दर्शाता है तथा इस भाव पर अशुभ ग्रह का प्रभाव शरीर के इन अंगों से संबंधित रोगों, चोटों अथवा परेशानियों का कारण बन सकता है।

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