एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने स्वर्णा से भोजन मांगा। तब स्वर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान् का भोग लगा लूं और तुम्हारे छोटे भाई – बहनों को खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुनकर शनि को क्रोध आ गया और उन्होंने माता को मारने के लिए अपना पैर उठाया, तो स्वर्णा ने शनि को श्राप दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए। माता का श्राप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा कह सुनाया। सूर्यदेव तुरन्त समझ गए कि कोई भी माता अपने पुत्र को इस तरह का शाप नही दे सकती। इसीलिए उनके साथ अपनी पत्नी नही कोई और हैं। सूर्य देव ने क्रोध में आकर पूछा कि बताओ तुम कौन हो, सूर्य का तेज देखकर स्वर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई उन्हे बता दी। तब सूर्यदेव नें शनि को समझाया कि स्वर्णा तुमारी माता नही हैं, लेकिन मां समान हैं। इसीलिए उनका दिया शाप व्यर्थ तो नही होगा, परन्तु यह इतना कठोर नही होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो जाए। हां, तुम आजीवन एक पाँव से लंगडाकर चलते रहोगे।