जहां एक ओर मंगल की स्थिति से रोजी रोजगार एवं कारोबार मे उन्नति और प्रगति होती है तो दूसरी ओर इसकी उपस्थिति वैवाहिक जीवन के सुख बाधा डालती है.
कुण्डली में जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में मंगल होता है तब मंगलिक दोष (manglik dosha)लगता है. लेकिन सिर्फ इतने से ही मांगलिक दोष नहीं माना जाता , कुंडली में कुछ ऐसी परिस्थितियां होती हैं , जिनके रहते हुए मंगल दोष होते हुए भी नहीं माना जाता . हमने आगे के टॉपिक में ऐसी स्थिति की व्याख्या की हैं .
कुण्डली में चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल मेष अथवा कर्क राशि के साथ योग बनाता है तो मंगली दोष लगता है .
इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है. यह दोष जिनकी कुण्डली में हो उन्हें मंगली जीवनसाथी ही तलाश करनी चाहिए ऐसी मान्यता है. सातवाँ भाव जीवन साथी एवम गृहस्थ सुख का है. इन भावों में स्थित मंगल अपनी दृष्टि या स्थिति से सप्तम भाव अर्थात गृहस्थ सुख को हानि पहुँचाता है ज्योतिशास्त्र में कुछ नियम (astrological principles)बताए गये हैं जिससे वैवाहिक जीवन में मांगलिक दोष नहीं लगता है.