बॉलकोनी होने से भवन की भव्यता में चार-चांद लग जाते हैं। बॉलकोनी ऐसे स्थान पर निर्मित करवानी चाहिए जहां प्रात:कालीन सूर्य का प्रकाश एवं प्राकृतिक हवा सहज सुलभ हो। बॉलकोनी से हवा व प्रकाश घर में भी प्रवेश करना चाहिए।
बॉलकोनी बनवाते समय इन बातों का ध्यान रखें-
1- यदि भूखण्ड पूर्वोन्मुखी या उत्तोन्मुखी हो तो वास्तु के अनुसार भवन के ईशान कोण में बॉलकोनी बनवाएं।
2- यदि भूखण्ड पश्चिममुखी हो तो बॉलकोनी वायव्य कोण में व दक्षिणोन्मुखी हो तो आग्नेय कोण में बनवाएं।
3- बॉलकोनी के फर्श की ऊंचाई भवन की सामान्य छत से थोड़ी नीची होनी चाहिए।
4- यदि भवन बहुमंजिला हो तो प्रत्येक लिविंग रूम के साथ बॉलकोनी भी होना चाहिए। मच्छर मक्खी आदि बॉलकोनी के माध्यम से घर में प्रवेश कर जाते हैं इसलिए आजकल बॉलकोनी को वायरगेज आदि से कवर्ड करने का भी प्रचलन है। इससे हवा व प्रकाश तो पूरा मिलता है, कीट-पतंग भी अंदर नहीं आते।
5- बॉलकोनी में सीमेंट, पत्थर, मार्बल, लोहा या लकड़ी की रैलिंग लगाई जा सकती है। पैराफिट वॉल पूरी तरह ईंट की न बनाएं अन्यथा हवा रुक जाएगी। डेढ़ फीट तक ईंट की दीवार बनवाई जा सकती है। इसके ऊपर रैलिंग लगवा लें।
6- बॉलकोनी के ऊपर की पूरी छत या आधी छत को ढलान देते हुए उस पर खपरैल की डिजाइन दी जा सकती है।
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कैसी हो घर की बॉलकोनी? – kaise ho ghar ke balcony? – वास्तु शास्त्र के अनुसार घर – vastu shastra ke anusar ghar