(i) पशुपति मूर्ति :- यहाँ एक मुहर मिली है। इस पर एक तिपाई पर एक व्यक्ति विराजमान है। इसका एक पैर मुड़ा है और एक नीचे की ओर लटका है। इसके तीन सिर हैं तथा सिर पर तिन सींग हैं। इसके हाथ दोनों घुटनो पर हैं तथा इसकी आकृति ध्यानावस्थित है। इसके दोनों ओर पशु हैं। इसकी छाती पर त्रिशूल की आकृति अंकित हैं। मार्शल के अनुसार सिंधुघाटी से मिली यह मूर्ति आज के शंकर भगवान की है। मैके ने भी इसे शिव की मूर्ति माना है। कुछ लोग इसे पशुपति की मूर्ति मानते हैं। जो भी हो या शिव के पशुपति रूप की मूर्ति निर्विवाद लगती है। इसके तीन सिर शिव के त्रिनेत्र के द्योतक हैं तथा तीन सींघ शिव के त्रिसूल के प्रतीक स्वरूप है।
(ii) नर्तक शिव :- यहाँ से प्राप्त दो कबन्ध प्रस्तर मूर्तियाँ जो पैरों की भावभंगिमा के कारण नृत्य की स्थिति का बोध कराती हैं नर्तक शिव की मानी जाती हैं। कुछ इतिहासकारों ने इन्हें नृत्यमुद्रा में उर्ध्वलिंगी होने का भी अनुमान लगाया है।
(iii) योगी शिव :- यहाँ के एक मुहर पर योग मुद्रा में ध्यान की स्थिति बैठे शिव की आकृति का अंकन है। इसके सामने दो तथा दोनों बगल में बैठी एक-एक सर्प की आकृति बनी है।
(iv) बनचारी शिव :- शिव का एक रूप बनवासी का भी होता है। यहाँ एक मुहर पर तीर-धनुष चलाते हुए एक आकृति मिली है। इसे शिव का बनचारी रूप माना जाता है।
(v) लिंग पूजा :- बड़े तथा छोटे शिव लिंग यहाँ बहुत से मिले हैं। कुछ के ऊपर छेद हैं जैसे ये धागा में पिरोकर गले में पहनने के काम आते होंगे। बड़े लिंग चूना पत्थर और छोटे घोंघे के बने हैं। इनकी पूजा विभिन्न समुदायों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से करने का अनुमान लगाया जा सकता है।