hiriya jiraiya ka jadu

manch jaadoo

मंच जादू – इंद्रजाल के जादू प्रदर्शन के प्रकार – manch jaadoo – indrajaal ke jadu pradarshan ke prakar

भ्रम का प्रदर्शन विशाल दर्शकों के सामने आमतौर पर एक सभागार के अन्दर किया जाता है। इस तरह के जादू को बड़े पैमाने पर रंगमंच की सामग्री, सहायकों के प्रयोग और प्राय: विदेशी जानवरों जैसे कि हाथी और बाघ के प्रयोग द्वारा अलग पहचाना जाता है। अतीत और वर्तमान के कुछ प्रसिद्द जादूगरों में: हैरी […]

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sookshm jaadoo

सूक्ष्म जादू – इंद्रजाल के जादू प्रदर्शन के प्रकार – sookshm jaadoo – indrajaal ke jadu pradarshan ke prakar

सूक्ष्म जादू (जिसे निकट का जादू या टेबल जादू के रूप में भी जाना जाता हैं) का प्रदर्शन जादूगर के पास के दर्शकों के साथ किया जाता है, कभी – कभी एक के लिए एक भी. इसमें आमतौर पर सहायक सामग्री के रूप में रोजमर्रा की वस्तुओं, जैसे कि ताश (ताश का हेरफेर देखें), सिक्के

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manyata aur vishwas

मान्यता और विश्वास – जादू टोन का इतिहास – manyata aur vishwas – jaadu tone ka itihaas

(अ)-स्वच्छता- इसके ये पुजारी थे। इसी से यहां विशाल स्नानागार तथा गर्म स्नानागार बने हैं। ये सामूहिक स्नान के लिए बनाए गए। व्यक्तिगत स्नान के लिए प्रत्येक घर के आंगन में स्नानगृह होता था। लगता है उत्सवों तथा पर्वों पर आज के पौराणिक धर्म की मान्यता की तरह लोग सामूहिक स्नान करते होंगे। तभी विशाल

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vriksh-pooja

वृक्ष-पूजा – जादू टोन का इतिहास – vriksh-pooja – jaadu tone ka itihaas

पौराणिक काल से पीपल, नीम, आंवला आदि वृक्षों की पूजा समाज में की जाती है तथा इससे सम्बन्धित अनेक त्योहारों की मान्यता भी दी गई है। सिंधु घाटी की सभ्यता में भी वृक्ष पूजा का चलन था तभी वहाँ से प्राप्त ठीकरों पर अनेक वृक्षों की आकृतियाँ अंकित हैं। इनसे पत्तों के आधार पर पीपल

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pashu-pooja

पशु-पूजा – जादू टोन का इतिहास – pashu-pooja – jaadu tone ka itihaas

वहां कि मुहरों पर अनेक प्रकार के पशुओं का अंकन मिला है। विविधता और संख्या में पशु अंकन की अधिकता को देखकर ऐसा लगता है कि ये पशुओं को देवता का अंश मानते थे। यह विश्वास है कि पहले पशुओं के रूप में देवताओं को स्वीकार किया जाता था। पीछे इनका मावनवीय रूप अंगीकार किया

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vaishnav dharm ka swaroop

वैष्णव धर्म का स्वरूप – जादू टोन का इतिहास – vaishnav dharm ka swaroop – jaadu tone ka itihaas

स्पष्ट से तो नहीं कहा जा सकता है कि हड़प्पावासी वैष्णव धर्म को मानते थे क्योंकि विष्णु या उनके अवतारों की मूर्तियां यहां नहीं मिली हैं। पर वहाँ से प्राप्त कुछ मुहरों पर बनी स्वस्तिक की आकृति तथा सूर्य का चिन्ह इस बात का द्योतक है कि पीछे वैष्णव सम्प्रदाय के विकास के साथ जुड़ने

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shaakt sampradaay ka svaroop

शाक्त सम्प्रदाय का स्वरूप – जादू टोन का इतिहास – shaakt sampradaay ka svaroop – jaadu tone ka itihaas

शक्ति पूजा प्राची विश्व की प्रायः सभी सभ्यताओं में होती रही है तभी शक्ति को आदिशक्ति माना जाता है। सिंधुघाटी से भी देवी की उपासना के चिन्ह प्राप्त होते हैं। सिन्धु सभ्यता में एक मुहर पर अंकित एक स्त्री की नाभि से निकला हुआ कमलनाल दिखाया गया है। यह उत्पादन एवं उर्वरता का बोधक होता

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hadappa dharm ke swaroop ke vishay mein prapt jaanakaaree ke anusaar

हड़प्पा धर्म के स्वरूपों के विषय में प्राप्त जानकारी के अनुसार – जादू टोन का इतिहास – hadappa dharm ke swaroop ke vishay mein prapt jaanakaaree ke anusaar – jaadu tone ka itihaas

1. इस सभ्यता में प्रकृति से चलकर देवत्व तक की यात्रा धर्म ने तय की थी। एक ओर हम वृक्ष पूजा देखते हैं तो दूसरी ओर पशुपति शिव की मूर्ति तथा व्यापक देवी पूजा। 2. यहाँ देवता और दानव दोनों ही उपास्य थे। देव मूर्तियों के अतिरिक्त अनेक दानवीयस्वरूपों का यहाँ के ठीकड़ों या मुहरों

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shaiv dharm ke svaroop

शैव धर्म के स्वरूप – जादू टोन का इतिहास – shaiv dharm ke svaroop – jaadu tone ka itihaas

(i) पशुपति मूर्ति :- यहाँ एक मुहर मिली है। इस पर एक तिपाई पर एक व्यक्ति विराजमान है। इसका एक पैर मुड़ा है और एक नीचे की ओर लटका है। इसके तीन सिर हैं तथा सिर पर तिन सींग हैं। इसके हाथ दोनों घुटनो पर हैं तथा इसकी आकृति ध्यानावस्थित है। इसके दोनों ओर पशु

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