shaakt sampradaay ka svaroop

शाक्त सम्प्रदाय का स्वरूप – जादू टोन का इतिहास – shaakt sampradaay ka svaroop – jaadu tone ka itihaas

शक्ति पूजा प्राची विश्व की प्रायः सभी सभ्यताओं में होती रही है तभी शक्ति को आदिशक्ति माना जाता है। सिंधुघाटी से भी देवी की उपासना के चिन्ह प्राप्त होते हैं। सिन्धु सभ्यता में एक मुहर पर अंकित एक स्त्री की नाभि से निकला हुआ कमलनाल दिखाया गया है। यह उत्पादन एवं उर्वरता का बोधक होता है। शक्ति की उपासना पृथ्वी पूजा से जुड़ी है। वहीं से मातृदेवी की उपासना का प्रारम्भ माना जाता है। यहाँ इन सभी का सम्बन्ध पृथ्वी देवी से और पौधों का सम्बन्ध उर्वरता तथा सृजनशीलता से जोड़ा जा सकता है। इसी प्रकार की एक मूर्ति प्राप्त हुई है जिसमें देवी पालथी मारे बैठी है और उनके दोनों ओर पुजारी भी बैठे हैं तथा इसके सिर पर एक पीपल का वृक्ष उगा है। इसको भी उत्पादकता का ही प्रतीक माना जा सकता है। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में मातृदेवियों की मूर्तियों का यहां मिलना द्योतक है कि ये लोग देवी के उपासक थे इनकी देवियाँ अविवाहित कन्याएँ होती थीं क्योंकि उनके स्तन सामान्य उभार के तथा गोल और अविकसित दीखते हैं। अनेक प्रकार के आभूषणों तथा केशविन्यास से सज्जित देवियों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि विविध देवियों की मान्यता यहाँ रही होगी अन्यथा सर्वत्र एक ही प्रकार की देवी मूर्तियाँ प्राप्त होतीं। एक बात और ज्ञात होती है कि ये प्रकृति को मातृदेवी के रूप में मानते थे तभी देवियों के साथ प्रकृति अवयव यहाँ जुड़ा मिला है। प्रकृति के ही सहारे जीव का पोषण होता है सम्भवतः ऐसा इनका विश्वास था।


एक मुहर पर सात औरतों की खड़ी आकृतियाँ बनी हैं और उनके सामने एक बकरा बँधा है जिसके पीछे लोग ढोल बजाते हुए नाच रहे हैं। देवी उपासना की पौराणिक परम्परा में सप्तमातृका एवं नवमातृका के उपासना का वर्णन मिलता है। यहाँ भी सप्तमातृका के उपासना का बोध होता है इस मुहर पर सात औरतों का अंकन इसका बोधक है। दूसरी ओर पौराणिक शाक्तधर्म में देवी के लिए पशुबली की मान्यता समाज में प्रचिलित है। यहाँ एक मुहर पर बँधा बकरा बलि के लिए उपस्थिति प्रतीत होता है। पौराणिक देवी पूजन का आरम्भ इसे मान सकते हैं। यहाँ से प्राप्त नारी मूर्तियों में एक विशेषता मुख्य रूप से दीखती है कि वे निर्वस्त्र हैं। निर्वस्त्रता प्रकृति के खुलेपन तथा उत्पादन का बोधक है। इससे हम कह सकते हैं कि ये प्रकृति को मातृदेवी मानकर उपासना करते थे इनकी पुष्टि यहां के एक मुहर पर प्राप्त एक देवी की मूर्ति से होती है जिसके सिर पर चील की तरह एक पक्षी पंख फैलाए बैठा है। लगता है कि वह मातृदेवी की रक्षा कर रहा हो।

शाक्त सम्प्रदाय का स्वरूप – shaakt sampradaay ka svaroop – जादू टोन का इतिहास – jaadu tone ka itihaas

Tags: , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , , ,

Leave a Comment

Scroll to Top