आज भी जादू-टोने और टोटके देखने को मिलते हैं।
कहने के लिए तो 21वीं सदी है लेकिन हमारा समाज अभी भी वही सदियों से चली आ रही अबूझ मान्यताओं में जी रहा है। खासकर महिलाओं में असुरक्षा का बोझ कुछ ज्यादा है। वह आज भी ईष्र्या, जलन, द्वेष्ा की शिकार हैं। ऎसा नहीं है उनकी मानसिकता को बदला नहीं जा सकता था या उन्हें बदलने के लिए किसी डॉक्टर और दवा की जरूरत है। जरूरत है तो सिर्फ और सिर्फ बराबर अधिकारों की। घर में उनसे ढंग से बात करने और सुनने की। वह क्या कहती हैं और क्या करना चाहती हैं यह समझना जरूरी है। उनकी समस्या का समाधान घर पर हो जाता है तो शायद उनके मन में भ्रम जड़ें नहीं जमाएगा। हमारे समाज में आज भी जादू-टोने टोटके यह सब देखने को मिलते हैं। यह सब क्या और क्यों है? द्वेष्ा और जलन की भावना उनमें ज्यादा होती है जिन्हें घर पर इज्जत नहीं मिलती। वे प्यार और सहानुभूति चाहती हैं। जब यह सब उन्हें हासिल नहीं होता, वे टोने जैसी चीजों पर उतर आती हैं। नहीं समझ पाती कि उनके अंदर जो शक्ति है उसका किस तरह से इस्तेमाल करें।
ऎसी महिलाएं परिणाम की चिंता नहीं करती उन्हें तो यह भी समझ नहीं आता कि इससे दूसरे लोगों का बुरा होगा और कभी पकड़ी गईं तो दूसरों के सामने उनकी स्थिति क्या होगी। घर में समाज में उनकी प्रतिष्ठा क्या रह जाएगी।
जादूगर जादू का शो दिखाकर लोगों का मनोरंजन करता है। इससे लोगों को खुशी मिलती है लेकिन ठीक उल्टा होता है जब लोगों के पैर किसी चौराहे पर टोटके वाले सामान से टकरा जाते हैं। उनके मन में ऎसा डर बैठ जाता है जिससे वे बीमार हो जाते हैं। उस टोटके का असर क्या है यह तो पता नहीं लेकिन डर से ही लोग बीमार हो जाते हैं।
जिस महिला ने भीतर की शक्ति को पहचान लिया वह रात के अंधेरों में भी कामयाबी हासिल कर सकती है और एक दिन कामयाबी को मुटी में कर दादी शूटर के नाम से सामने आ जाती हंै। बुजुर्ग होकर भी इस महिला ने अपनी पोती के साथ निशानेबाजी को साधा। वे रात को अभ्यास किया करती। इससे उलट कमजोर स्त्री अंधेरे में टोटके करके अपनी पहचान बचाने की कोशिश में लगी रहती है।