राहु-केतु को छाया ग्रह माना जाता है। इसकी कल्पना सर्प से की गई है। राहु उसका धड़ और केतु पूँछ माना जाता है। राहु केतु का अपना प्रभाव नहीं होता। ये जिस राशि में/भाव में होते हैं और जिस ग्रह के साथ बैठते हैं, उसी के अनुरूप फल को घटाते या बढ़ाते हैं।
राहु : राहु की उच्च राशि मिथुन है अत: इस राशि में होने पर यह बुरा फल नहीं देता। इसे शनि के समान माना जाता है अत: शनि की राशि (मकर, कुंभ) में होने पर भी बुरा फल नहीं देता।
राहु क्रमश: तीसरे, छठे व दसवें भाव का कारक है अत: यहाँ यह शुभ फल ही देता है। विशेषकर दसवें भाव पर इसका प्रभाव राजयोग बनाता है और राजनीति में सफलता देता है।
केतु : केतु की उच्च राशि धनु है अत: इस राशि में होने पर यह शुभ फल ही देता है। इसे मंगल के समान माना जाता है अत: मंगल की राशि (मेष, वृश्चिक) में होने पर बुरा फल नहीं देता।
केतु क्रमश: दूसरे व आठवें भाव को कारक है। व्यय में भी यह मोक्षकारक होता है अत: यहाँ यह शुभ फल ही देता है। अन्य भावों में राहु केतु अशुभ फल देते हैं।
गोचर में भ्रमण : गोचरवश जब राहुल केतु 3, 6, 10, 11 में होते हैं तो शुभ फल देते हैं। अन्य स्थानों से इनका भ्रमण कष्टकारी होता है तथा भाव के फलों की हानि करता है अत: उस समय उचित उपायों का सहारा लेना चाहिए।