यह यन्त्र कृष्णपक्ष की अष्टमी रविवार या चतुर्दशी रविवार को पूर्व दिशा की ओर मुंह कर अनार की कलम और अष्टगंध स्याही से भोजपत्र पर लिखें। फिर यन्त्र को पूजा-स्थल पर स्थापित करके एक हजार की संख्या में प्रतिदिन मन्त्र का जप करें। मन्त्र-जप पूरे 45 दिन तक किया जाता है। मन्त्र का जप करते समय दृष्टि यन्त्र पर ही टिकी रहनी चाहिए। तत्पश्चात् यन्त्र को चांदी या तांबे के तावीज में भरकर, काले धागे की सहायता से भुजा या गले में धारण करें। इस तावीज के प्रभाव से व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में सफलताएं प्राप्त करता चला जाता है, असफलता उससे कोसों दूर रहती है।
मंत्र :- विपंच्या गायन्ती विविधमपदानं पुर रिपो
स्त्वयारब्धे वक्तु चलितशिरसा साधुवचने
तदीयैर्मा धुर्यैपल पितन्त्री कलरवां
निजां वीणां वाणी निचुलयति चोलेन निभृतम् ।