यह प्रश्न टेलीफोन पर पूछा गया था और इसके सम्बन्ध में सभी को जानना चाहिए। इसकी वास्तविकता उन पंडितों में भी बहुत कम जानते है; जो इन यंत्रों पर पूजा करवाते है। साधक भी एक प्रकार की अंधी आस्था रखकर ही इसकी पूजा करके अपने ईष्ट की साधना करते है; पर हमारे ऋषियों एवं आचार्यों ने इस पर थोडा-बहुत जो प्रकाश डाला है, उससे ज्ञात होता है-
पूजा के यंत्र प्रतीकात्मक हैं। कुछ विशेष को छोड़कर पूजा के सभी यंत्र श्री चक्र या भैरवी चक्र के ही रूप होते है। यह किसी इकाई के अस्तित्त्व का ब्लूप्रिंट है। यह ब्रह्माण्ड की भी संरचना का ब्लूप्रिंट है, क्योंकि जो इकाइयों की संरचना है, वही उसकी है।
सामान्य पूजा अष्टदल कमल में होती है, जिसमें एक षट्कोण होता है। महाकाली आदि नेगेटिव शक्तियों में अधोमुखी त्रिकोणों का समूह। कभी-कभी षट्कोण में त्रिकोण होता है और कभी कई षट्कोण एक दूसरे में समाहित रहते है। ये भिन्न-भिन्न स्तर और ऊर्जात्मक स्थिति के डायग्राम हैं। समझने के लिए षट्कोण से युक्त अष्टदल कमल और भूपुर को समझना चाहिए।
इसमें बताया गया है कि षट्कोण के बीच में जो बिंदु है; शक्ति उत्पादन का केंद्र वह है। वहाँ से वह षट्कोण में फैलाती है और वहां से नाभिक के बाहर निकलकर आठ और ऊर्जा प्रकारों को उत्पन्न करती है, जिसमें स्थान भेद से कोई अन्य रूप भी इसी श्रेणी में उत्पन्न होते है भूपुर बनाते है यानी अस्तित्त्व बनाते है।.अब केंद्र में हम जिस शक्ति का आवाहन करते है; वही शक्ति विकरित होती है और अपने आठ स्वरूपों में अभिव्यक्त होकर इकाई के अस्तित्त्व का निर्माण करती है।
इसका रहस्य तन्त्र-साधनाओं के आचार्यों के निर्देश से ज्ञात होता है। हर जगह केंद्रीय शक्ति को अपने ह्रदय में ध्यान लगाकर स्थापित करने और चक्र को अपने शरीर में धारण करने का निर्देश दिया गया है। यानी यंत्र आपके शरीर का ब्लूप्रिंट है। दस दिकपाल, लोकपाल आदि, गणेश जी – इस शरीर में है। जब आप यंत्र की पूजा करते है; तो जहाँ कर रहे है , वहाँ उस बिंदु पर शरीर में ध्यान लगाये और मंत्र पढ़े। षट्कोण देखिये। ऊपर गर्दन से निकला त्रिकोण जो शीर्ष बनाता है, दोनों और कंधे जहां से बाजू निकलते है। नीचे दोनों कमर के छोर, नीचे त्रिकास्थि नीचे ऊपर के क्रॉस पर के जोड़ मिल जायेंगे। आठ कमल नाभिक को छोड़कर आपके आठ ऊर्जाचक्र है। दो के बीच के गैप की शक्तियां आठों से निकल कर फैलने वाली ऊर्जा शरीर के अंदर बाहर के क्षेत्रपाल एवं लोकपाल।अधोमुखी त्रिकोणों के मध्य बिंदु का अर्थ मूलाधार केंद्र होता है। कुछ को शक्ति को ह्रदय में धारण करना होता है। कुछ को मूलाधार में और कुछ को कन्धों एवं रीढ़ की जोड़ों पर। यहाँ भी अधोमुखी त्रिकोण ही होता है।
पर हम क्या करते है? कभी ऐसा किया है? यन्त्र पर विधि अपना रहे होते है और माचिस कहाँ है, इसके लिए पूछ रहे होते है। उस यंत्र में कोई देवता नहीं है। वह यंत्र दिशा निर्देश का ब्लूप्रिंट है। 10 दिशाओं से देखेंगे, तो वह पूरा का पूरा आपका अस्तित्त्व है या किसी का भी अस्तित्त्व है। उसे अपने शरीर में व्याप्त करके पूजा करने या साधना करने से लाभ मिलता है वरना करते रहिये पूजा। कुछ मिलेगा, तो वही जो कुछ क्षण आपके भाव में वह शक्ति रही होगी, वरना इसका वास्तविक लाभ कभी नहीं मिलेगा, चाहे लाख ड्रामा कर लें।
फिर विद्या को दोष देंगे, पंडितों-साधकों को गाली देंगे कि सारी पूजा तो कर ली; मंत्र भी पांच लाख जप लिया, पर कुछ न हुआ। बिजली का तार जोड़ा नहीं और स्विच दबा कर एडिसन को गाली दे रहे ; तो इसका कोई क्या कर सकता है?