मंगल ग्रह की उत्पत्ति का पौराणिक वृत्यांत स्कंद पुराण के अवंतिका खण्ड में आता है की एक समय उज्जयिनी पुरी में अंधक नाम से प्रसिद्ध दैत्य राज्य करता था | उसके महापराक्रमी पुत्र का नाम कनक दानव था | एक बार उस महाशक्तिशाली वीर ने युध्य के लिए इन्द्र को ललकारा तब इन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके साथ युध्य करके उसे मार गिराया | उस दानव को मारकर वे अंधकासुर के भय से भगवान शंकर को ढूंढते हुए कैलाश पर्वत पर चले गये | वह देवताओं के स्वामी इन्द्र ने भगवान चंद्रशेखर के दर्शन करके अपनी अवस्था उन्हें बतायी और प्रार्थना की, भगवन ! मुझे अंधकासुर से अभय दीजिये | इन्द्र का वचन सुनकर शरणागत वत्सल शिव ने अभय देते हुए कहा – इन्द्र तुम अंधकासुर से भय न करो | इसके पश्च्यात भगवान शिव ने अंधकासुर को युद्ध के लिए ललकारा, युद्ध अत्यंत घमासान हुआ, और उस समय लड़ते – लड़ते भगवान शिव के मस्तक से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी, उससे अंगार के सामान लाल अंग वाले भूमिपुत्र मंगल उत्पन्न हुए | अंगारक , रक्ताक्ष तथा महादेव पुत्र, इन नामो से स्तुति कर ब्राह्मणों ने उन्हें ग्रहों के मध्य प्रतिष्ठित किया, तत्पश्चात उसी स्थान पर ब्रम्हाजी ने मंगलेश्वर नामक उत्तम शिवलिंग की स्थापना की | वर्तमान में यह स्थान मंगलनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जो उज्जैन में स्थित है | मंगल देव जब बालक रूप में उत्पन्न हुए तब उनका तेज़ बहुत ज्यादा था, जिससे देवता एवं मनुष्य गण पीड़ित होने लगे, तब भगवान शिव ने उन्हें गोद में उठाया और उनसे बोले, हे बालक ! तुम मेरी ही राजस प्रकृति से उत्पन्न हुए हो, लोगो को त्रास मत दो, मै तुम्हे ग्रहों के सेनापति का पद प्रदान करता हूँ | तुम अवंतिका नगरी में निवास करो और लोगो का मंगल करो ! इस प्रकार मंगल ग्रह की उत्पत्ति स्थल उज्जैन (अवंतिका) माना जाता है | जो मनुष्य इस स्थान पर आकर मंगल देव का विधिवत पूजन दर्शन करता है, उसके मंगल दोष का शमन होता है |