पित्तर कौन होते है पित्तरों का महत्व – पितृदोष | Who are the fathers, importance of fathers – pitrdosh

संसार के समस्त धर्मों में कहा गया है कि मरने के बाद भी जीवात्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं होता है वरन वह किसी ना किसी रूप में बना ही रहता हे। जैसे मनुष्य कपड़ों को समय समय पर बदलते रहते है उसी तरह जीव को भी शरीर बदलने पड़ते है जिस प्रकार तमाम जीवन भर एक ही कपड़ा नहीं पहना जा सकता है उसी प्रकार आत्मा अनन्त समय तक एक ही शरीर में नही ठहर सकती है।

ना जायते म्रियते वा कदाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूपः

ऊजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।

गीता.2ए अध्याय.20

अर्थात आत्मा ना तो कभी जन्म लेती है और ना ही मरती है मरना जीना तो शरीर का धर्म है शरीर का नाश हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता है। विज्ञान के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी भी नष्ट नहीं होता है वरन् उसके रूप में परिवर्तन हो जाता है।

व्यक्ति के सत्संस्कार होने के बाद यही अक्षय आत्मा पित्तर रूप में क्रियाशील रहती है तथा अपनी आत्मोन्नति के लिये प्रयासरत रहने के साथ पृथ्वी पर अपने स्वजनों एवं सुपात्रों की मदद के लिये सदैव तैयार रहती है।

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