pleurisy (pleurisy)

प्लूरिसी (Pleurisy) – पुरुष रोग का प्राकृतिक चिकित्सा – pleurisy (pleurisy) – purush rog ka prakritik chikitsa

प्लूरिसी (Pleurisy)
जानकारी:-
जब यह रोग किसी मनुष्य को हो जाता है तो उसके फेफड़ों को ढ़कने वाली झिल्ली में सूजन आ जाती है। इन झिल्ली के द्वारा ही फेफड़ों की सुरक्षा होती है। झिल्ली में सूजन होने के कारण रोगी को अपनी छाती में तेज चुभन वाला दर्द होता है।

प्लूरिसी रोग के लक्षण-

प्लूरिसी रोग से पीड़ित रोगी की छाती में तेज दर्द होता है। इस रोग के कारण रोगी को ठंड लगने लगती है तथा रोगी व्यक्ति की छाती भारी हो जाती है तथा उसे बुखार भी हो जाता है। रोगी व्यक्ति को भूख लगना बंद हो जाती है। जब इस रोग की अवस्था गम्भीर हो जाती है तो रोगी की झिल्ली से दूषित द्रव्य बाहर निकलकर छाती में भर जाता है।

प्लूरिसी रोग होने का कारण:-

इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण सर्दी लगकर रोगी के फुफ्फुसावरण में सूजन तथा अकड़न होना है। निमोनिया के कारण भी प्लूरिसी रोग हो सकता है और इस रोग के कारण भी निमोनिया रोग हो सकता है।

प्लूरिसी रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

प्लूरिसी रोग से पीड़ित रोगी को फलों का रस पीकर कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए।
उपवास के दौरान रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन गर्म पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए और फिर कुछ घंटों तक अपने शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए।
रोगी व्यक्ति को गुनगुने पानी से शरीर पर स्पंज करना चाहिए और गर्म गीली पट्टी को छाती पर लपेटना चाहिए। इस पट्टी को दिन में 2-3 बार बदल-बदल कर लगाना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सूर्यस्नान और सूखा घर्षण करना चाहिए जिससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
इस रोग से पीड़ित रोग का उपचार करने के बाद यदि रोगी के शरीर का तापमान सामान्य हो जाए तथा भूख लगने लगे तो समझना चाहिए कि रोगी ठीक हो गया है।

प्लूरिसी (Pleurisy) – pleurisy (pleurisy) – पुरुष रोग का प्राकृतिक चिकित्सा – purush rog ka prakritik chikitsa

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