वास्तु शास्त्र के नियम बहुत ही सूक्ष्म अध्ययन और अनुभव के आधार पर बने हैं.इसमे पंच मूलभूत तत्त्वो का भी समावेश किया गया हैं. ये पंच मूलभूत तत्त्व हैं – आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि, वास्तु मात्र भवन निर्माण नहीं, अपितु वो सम्पूर्ण देश, नगर, उपनगर,निर्माण योजना से लेकर छोटे छोटे भवन और उसमे रखी जाने वाली वस्तुओं तक से सम्बंधित हैं.जिन घरों में वास्तु दोष होता हैं, उन घरों के सदस्यों को अक्सर बीमारी रहती हैं. वास्तु दोष पंच तत्वों के असंतुलन के कारण होता हैं.जिस तत्व के कारण असंतुलन होता हैं, उससे सम्बंधित रोग उत्पन्न होते हैं.आईए जाने पश्चिम दिशा में क्या दोष होने से किस प्रकार के रोगों का सामना करना पढ़ सकता हैं….
पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि हैं. यह काल पुरुष कुण्डली के अनुसार पेट, गुप्तांगों और प्रजनन अंगों का प्रतिनिधित्व करता हैं. यदि जन्म कुण्डली अनुसार शनि महादशा, अंतर्दशा, आदि, गोचर में अशुभ स्थिति में हैं या विचरण कर रहा हो तो पश्चिम दिशा में निम्न दोष उत्पन्न हैं. सावधान रहें. निम्न कष्ट होने की पूरी संभावना रहेगी,एवं उपाय करना जरूरी हैं.
(१)- यदि पश्चिम दिशा का भाग नीचा होगा,तो पुरुष संतान अस्वस्थ व् मानसिक रोगी हो सकती हैं.स्वभाव में चिढ़चिढ़ापन आ सकता हैं.
(२)- यदि पश्चिम भाग में चबूतरे नीचे होंगे तो फेफढ़े, मुख, छाती और चमड़ी के दुखदाई रोग होने की पूरी संभावना रहती हैं.
(३)- यदि पश्चिम भाग में जल या वर्षा का जल पश्चिम दिशा से निकले या किसी भी प्रकार की पानी की निकासी पश्चिम दिशा से बाहर जा रही हो तो घर लंबी बिमारियों का रास्ता खुल जाता हैं .
(४)- यदि मुख्य द्वार पश्चिम दिशा वाला हो तो घर में बिना बात के कोलाहल या अशांति बनी रहने की सम्भावना रहती हैं.
(५)- यदि पश्चिम दिशा के किसी भी भाग में कंही भी दरारें हो तो घर में और घर के नर सदस्यों में गुप्त रोग तथा नपुंसकता आदि रोग फेलते हैं.
(६)- यदि पश्चिम दिशा में अग्नि का स्थान हो तो घर में सदस्यों कों क्रोध आयगा एवं गर्मी, पित्त और मस्सों की शिकायत होगी.
पश्चिम दिशा के दोष – paschim disha ke dosh – वास्तु और स्वास्थ्य – vastu aur swasthya