हमारे इर्दगिर्द की वस्तुओं का हमारे जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव तथा उसकी सटीक व्याख्या है। आसान शब्दों में कहें तो वास्तु एक विज्ञान का विषय है जो के हमारे आसपास की हर चीज़ का हम पे पढ़ने वाले असर का उल्लेख करता है। वास्तु सिद्धांत की उत्त्पत्ति पर्यावरण में पंचतत्व के बीच सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश से हुई थी। मूलरूप से वास्तु शुद्ध विज्ञान है जो के एक प्रतिष्ठित शब्द “पर्यावास” को परिभाषित करता है। तो चलिए वास्तु के इस लेख में हम निवास की सबसे महत्वपूर्ण जगह शयनकक्ष (बेडरूम) की व्यख्या करते हैं।
शयनकक्ष हमारे निवास स्थान की सबसे महत्वपूर्ण जगह है जो हमें सुकून और आराम पहुंचाती है। उत्कृष्टता से अगर शयनकक्ष को परिभाषित किया जाए तो ये वो जगह है जहां लोग आमतौर रात के समय चैन की नींद सोते हैं और अपने सपनो में खो जाते हैं तथा बेडरूम का इस्तेमाल दिन के समय में लेटने तथा आराम करने के लिए भी किया जाता है। क्या कभी आपको ये अहसास हुआ है के हम अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा (लगभग 33% समय) सोते हुए गुज़ार देते हैं, ज़रा सोचिए के सोते हुए हम अपनी जिंदगी का 33% समय शयनकक्ष में गुज़ार देते हैं।
शयनकक्ष का विचार हमारे मन में आते ही हमें पलंग और गद्दा ज़हन में आता है। आज के समावेश में शयनकक्षों की श्रेणी वास्तव में साधारण से आत्याधिक जटिल तक हो सकती है। आज भारत जैसे विकासशील देशों में घरों में अनेक बेडरूम हो सकते है तथा बाथरूम शयनकक्ष से जुड़ी एक प्रार्थमिकता हो चुका है। आज से कुछ दशक पूर्व तक तो स्नानघर और गुसलखाना शयनकक्ष के साथ नहीं बनाया जाता था। शोच घर का प्रवधान घर से बहार ही रखा जाता था परंतु आज के परिवेश में अटेच बाथरूम हमारी बुनियादी ज़रूरत बन चुकी है। वास्तु शास्त्र शयन कक्ष की स्थापन और डिजाइन तैयार करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्या आपको पता है के अलग अलग दिशा में अपने सिर को रखकर सोने का तरीका और बिस्तर की स्थापन वास्तु की दृष्टि में एक बड़ा निर्णय है जिसका यथासंभव ध्यान रखना चाहिए।
शयनकक्ष में शांति और समृद्धि हेतु कुछ बुनियादी तथ्य
1. हम में से अधिकांश लोग सही गद्दा चुनने में समय बर्बाद नहीं करते है परंतु सोच कर देखिए हम जीवन का एक तिहाई हिस्सा गद्दे पर ही बिता देते हैं परंतु वैज्ञानिक रूप से सोचिए और जानिए के गद्दे की गुणवत्ता का संबंध नींद की गुणवत्ता के साथ जुड़ा हुआ है इसलिए गद्दों की गुडवत्ता, आकार और आकृति वास्तु के दृष्टिकोण से शारीरिक, मानसिक और सेहत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
2. किसी भी व्यक्ति को यथासंभव अपने घर पर ही सोना चाहिए और सोते समय व्यक्ति का सिर पश्चिम या दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए (पैर पूर्व यां उत्तर की ओर)। यात्रा अथवा प्रवास के समय व्यक्ति को अपना सिर पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए (पैर पश्चिम की ओर)। शयनकक्ष में मेज़ की स्थापना पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए। शयनकक्ष में अलमारी का स्थान दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।
3. घर के मुखिया का शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए, कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा भू-तत्व को संबोधित करती है, जो के स्वयं में सर्वाधिक भार लिए हुए होती है। अतः घर के मुखिया का शयनकक्ष आकार में सबसे बड़ा होना चाहिए। बहुमंजिला ईमारत में घर के मुखिया का शयनकक्ष सबसे ऊपरी ईमारत पर बना होना चाहिए।
4. घर के बच्चों का शयनकक्ष कदापि भी दक्षिण दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। घर के बच्चों का शयनकक्ष घर की उत्तर-पश्चिम या पश्चिम दिशा में होना चाहिए। घर के अविवाहित सदस्यों का शयनकक्ष पूर्व दिशा में होना श्रेष्ठ होता है। अध्यनरत बच्चों का शयनकक्ष पश्चिम दिशा में होना अच्छा रहता है।
5. घर की उत्तरपूर्व दिशा (ईशानकोण) में अतिथि कक्ष (गेस्टरूम) होना उत्तम माना गया है। वास्तु के दृष्टिकोण से इशान दिशा को देव स्थान कहा जाता है तथा सनातन संस्कृति में “अतिथि देवो भव्” की मान्यता प्रचलित है अतः घर का उत्तरपूर्व कोण में बना कक्ष अतिथि, पूजा कक्ष अथवा भंडार कक्ष होना श्रेष्ठ है।
6. घर की दक्षिण पूर्व दिशा में शयनकक्ष होना वर्जित कहा गया है क्योंकि इस दिशा को अग्नि की संज्ञा दी गई है। अतः इस दिशा में प्रवास करने पर रोग, व्याधि पीड़ा रहने का सर्वाधिक खतरा बना रहता है। दम्पति का दक्षिणपूर्व दिशा में बने शयनकक्ष में निवास आपसी झगड़े को जन्म देता है और बच्चों का इस शयन कक्ष में रहना उन्हें मंदबुद्धि बनाता है।
7. शयनकक्ष के रंगों का चुनाव वास्तु के दृष्टिकोण से परम महत्वपूर्ण है। शयनकक्ष में सैदव हलके शेड के रंगों का चुनाव करना चाहिए। गुलाबी, आसमानी और पिस्ता शेड के रंग मन को सूकून देने वाले होते हैं। शादिशुदा दम्पति और घर के मुखिया का शयनकक्ष पीले और सफ़ेद शेड से रंगा नहीं होना चाहिए।
8. शादीशुदा दम्पति और घर के मुखिया के शयन कक्ष में संगेमरमर (मार्बल) से बना फर्श वर्जित माना गया है। संगेमरमर (मार्बल) से बना फर्श घर के पूजा कक्ष और अथिति कक्ष के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
9. आमतौर पर एक सामान्य शयन कक्ष में अलमारी, मेज, ड्रेसिंग टेबल और पलंग पाए जाने वाले अन्य मानक सामान हैं और वास्तु के मुताबिक इनकी स्थापना शयनकक्ष के दक्षिणी कोने में होनी चाहिए। यथासंभव कक्ष का केंन्द्र खाली ही रखना चाहिए और कक्ष का दक्षिण-पश्चमी कोण भरा हुआ रहना चाहिए।
आवश्यक वास्तु टिप्स
1. बिस्तर के सामने आईना न लगाएं।
2. पलंग शयनकक्ष के दरवाजे के सामने नहीं होना चाहिए।
3. डबलबेड के गद्दे जुड़े हुए होने चाहिए (दो अलग अलग ना होकर एक ही बड़ा गद्दा होना चाहिए।
4. शयनकक्ष के दरवाजे करकराहट की आवाजें नहीं करने चाहिए।
5. शयनकक्ष में धार्मिक चित्र नहीं लगाने चाहिए।
6. पलंग का आकार यथासंभव चोकोर रखना चाहिए।
7. पलंग की स्थापना छत के बीम के नीचे नहीं होनी चाहिए।
8. शयनकक्ष में रखा हुआ पलंग लकड़ी से बना हो श्रेष्ठ रहता है। लोहे से बने पलंग वर्जित कहे गए हैं।
9. रात्रि में सोते समय नीले रंग का नाईट लेम्प जलाकर सोना श्रेष्ठ रहता है।
10. कभी भी सिरहाने पानी का जग अथवा ग्लास रखकर न सोएं।
सुकून और सेहत का वास्तु रहस्य – sukoon aur sehat ka vastu rahasya – वास्तु और स्वास्थ्य – vastu aur swasthya