भवन के मुख्य द्वार का उसके वास्तु शास्त्र पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। यदि मुख्य द्वार में ही दोष हो तो इसे दूर करना अति आवश्यक होता है। मुख्य द्वार बनवाते समय नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें-
1- वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार काफी महत्वपूर्ण होता है इसे सिंह- द्वार भी कहते हैं।
2- वास्तु के अनुसार चारों दिशाओं के 32 देवताओं के शुभ-अशुभ फलों को देखते हुए ही मुख्य द्वार बनवाना चाहिए।
3- यदि भूखण्ड पूर्वोन्मुखी हो तो पूर्व की ओर के मध्य से ईशान कोण तक का भाग मुख्य द्वार बनवाने के लिए एकदम उपयुक्त होता है।
4- दक्षिणोन्मुखी भूखण्ड की भुजा के मध्य बिंदु से आग्नेय कोण तक का भाग मुख्य द्वार के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
5- पश्चिमोन्मुखी भूखण्ड की पश्चिमी भुजा के मध्य से वायव्य कोण तक का भाग मुख्य द्वार के लिए उच्च कोटि का माना गया है। साथ ही मध्य भाग से नैऋत्य कोण के बीच भी मुख्य द्वार रखा जा सकता है।
6- उत्तोन्मुखी भूखण्ड की उत्तरी भुजा के मध्य से ईशान तक का भाग मुख्य द्वार के लिए उत्तम माना गया है।
7- वास्तु के अनुसार मुख्य द्वार के लिए उत्तरी ईशान, पूर्वी ईशान, दक्षिणी आग्नेय व पश्चिमी वायव्य कोण अधिक शुभ माने जाते हैं।
सोच-विचार कर बनाएं घर का मुख्य द्वार – soch-vichaar kar banaen ghar ka mukhy dvaar – वास्तु शास्त्र के अनुसार घर – vastu shastra ke anusar ghar