नीचे होने के कारण बारिश का पानी इसी ओर से बाहर निकलता है। यह शुभ माना गया है, क्योंकि वर्षा का पानी पूर्ण शुद्ध जल होता है। इसी ओर चापाकल या भूमिगत पानी की टंकी होना भी शुभ है। सकारात्मक ऊर्जा सदैव प्राप्त हो इसलिए दैव प्रतिष्ठा भी इसी कोण में की जानी चाहिए। यदि ईशान ठीक हो, तो मानसिक कष्ट, धन का अपव्यय व स्वास्थ्य संबंधी कष्ट नहीं होते हैं। इस ओर चटकीले व हल्के रंगों का उपयोग करना चाहिए। नैर्ऋत्य ऊंचा व सूखा होना: नैर्ऋत्य कोण में वास्तु पुरुष के पैर होते हैं। वास्तु पुरुष स्थिर रह सके इसलिए यह कोण ठोस, ऊंचा व सूखा रहना चाहिए। यदि कोण नीचा होता है, तो रहने वाले निश्चय ही रोग का शिकार हो जाते हैं। यदि यह खुला हो, तो सकारात्मक ऊर्जा का निकास हो जाता है और नकारात्म ऊर्जा जातक को रोगी बना देती है।
वास्तु के कुछ उलझे नियम 1 – vastu ke kuch uljhe niyam 1 – वास्तु शास्त्र के अनुसार घर – vastu shastra ke anusar ghar