bhoomi kee pareeksha

भूमि की परीक्षा – वास्तुशास्त्र – bhoomi kee pareeksha – vastu shastra

पहले भूमि की परीक्षा कर फिर बाद में वहाँ गृह का निर्माण करना चाहिये। श्वेत, लाल, पीली और काली- इन चार वर्णों वाली पृथिवी क्रमश: ब्राह्मणादि चारों वर्णों के लिये प्रशंसित मानी गयी है।
इसके बाद उसके स्वाद की परीक्षा करनी चाहिये। ब्राह्मण के लिये मधुर स्वाद वाली, क्षत्रिय के लिये कड़वी, वैश्य के लिये तिक्त तथा शूद्र के लिये कसैली स्वाद वाली पृथ्वी उत्तम मानी गयी है। तत्त्पश्चात भूमि की पुन: परीक्षा के लिये एक हाथ गहरा गड्ढा खोदकर उसे सब ओर से भली-भाँति लीप-पोतकर स्वच्छ कर दे। फिर एक कच्चे पुरवे में घी भरकर उसमें चार बत्तियाँ जला दे और उसे उसी गड्ढे में रख दे। उन बत्तियों की लौ क्रमश: चारों दिशाओं की ओर हों यदि पूर्व दिशा की बत्ती अधिक काल तक जलती रहे तो ब्राह्मण के लिये उसका फल शुभ होता है।

इसी प्रकार क्रमश: उत्तर, पश्चिम और दक्षिण की बत्तियों को क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों के लिये कल्याणकारक समझना चाहिये। यदि वह वास्तु दीपक चारों दिशाओं में जलता रहे तो प्रासाद एवं साधारण गृह-निर्माण के लिये वहाँ की भूमि सभी वर्णों के लिये शुभदायिनी है। एक हाथ गहरा गड्ढा खोदकर उसे उसी मिट्टी से पूर्ण करते समय इस प्रकार परीक्षा करे कि यदि मिट्टी शेष रह जाये तो श्री की प्राप्ति होती है, न्यून हो जाय तो हानि होती है तथा सम रहने से समभाव होता है। अथवा भूमि को हल द्वारा जुतवाकर उसमें सभी प्रकार के बीज बो दे। यदि वे बीज तीन, पाँच तथा सात रातों में अंकुरित हो जाते हैं तो उनके फल इस प्रकार जानने चाहिये। तीन रात वाली भूमि उत्तम, पाँच रात वाली भूमि मध्यम तथा सात रात वाली कनिष्ठ है। कनिष्ठ भूमि को सर्वथा त्याग देना चाहिये। इस प्रकार भूमि परीक्षा कर पंचगव्य और औषधियों के जल से भूमि को सींच दे और सुवर्ण की सलाई द्वारा रेखा खींचकर इक्यासी कोष्ठ बनावे।

कोष्ठ बनाने का ढंग इस प्रकार है- पिष्टक से चुपड़े हुए सूत से दस रेखाएँ पूर्व से पश्चिम तथा दस रेखाएँ उत्तर से दक्षिण की ओर खींचे। सभी प्रकार के वास्तु-विभागों में इस नव-नव (9×9=81) अर्थात इक्यासी[6] कोष्ठ का वास्तु बनाना चाहिये। वास्तुशास्त्र को जानने वाला सभी प्रकार के वास्तु सम्बन्धी कार्यों में इसका उपयोग करे।

भूमि की परीक्षा – bhoomi kee pareeksha – वास्तुशास्त्र – vastu shastra

 

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