varsh 2018 mein bana rahe hain ghar

वर्ष 2018 में बना रहे हैं घर, तो ये जानना है बेहद जरूरी – वास्तु शास्त्र टिप्स – varsh 2018 mein bana rahe hain ghar, to yeh jaana hai behad jaruri – vastu shastra tips

वास्तु का मतलब है घर में सूर्य का प्रकाश-हवा और प्रकाश की पर्याप्त व्यवस्था। दिशा चाहे जो हो, लेकिन इस नियम का पालन करना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।

जाहिर है स्वास्थ्य की दृष्टि से हवा और रोशनी की जरूरत होती ही है। इसलिए ही वास्तु को शास्त्र का दर्जा दिया गया है। वास्तु के हिसाब से घर के निर्माण के लिए कुछ तय नियम है। नियम थोड़े लचीले होते हैं, इसमें आप अपनी सुविधा के हिसाब से थोड़ा-बहुत हेर-फेर कर सकते हैं।

घर की दिशा : घर का मुख्य द्वार सिर्फ पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। हालांकि वास्तुशास्त्री मानते हैं कि घर का मुख्य द्वार चार में से किसी एक दिशा में हो। वे चार दिशाएं हैं- ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम। लेकिन सुविधा के दृष्टि आप किन्हीं दो दिशाओं का चयन कर सकते हैं।

पूर्व या उत्तर का द्वार : पूर्व इसलिए कि पूर्व से सूर्य निकलता है और पश्चिम में अस्त होता है। उत्तर इसलिए कि उत्तरी धुव्र से आने वाली हवाओं को अच्छा माना जाता है। और घर को बनाने से पहले हवा, प्रकाश और ध्वनि के आने के रास्तों पर ध्यान देना जरूरी है।

जमीन का ढाल : सूरज हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है अत: हमारे वास्तु का निर्माण सूरज की परिक्रमा को ध्यान में रखकर ही किया जाए तो बेहतर होगा। सूर्य के बाद चंद्र का असर इस धरती पर होता है तो सूर्य और चंद्र की परिक्रमा के अनुसार ही धरती का मौसम संचालित होता है।

उत्तरी और दक्षिणी धुर्व पृथ्वी के दो केंद्रबिंदु हैं। उत्तरी धुव्र जो आर्कटिक सागर कहलाता है वहीं दक्षिणी धुव्र ठोस धरती वाले अंटार्कटिका महाद्वीप के नाम से जाना जाता है।

ये धुरी वर्ष-प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं। दक्षिणी ध्रुव ज्यादा ठंडा होने से वहां मानव बस्ती नहीं है। इनके ही कारण ही धरती का वातावरण संचालित होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर ऊर्जा का खिंचाव होता है। शाम ढलते ही पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं। अत: पूर्व, उत्तर एवं ईशान की और जमीन का ढाल होना चाहिए।

दिशा और नियम

प्रत्येक दिशा नियम से बंधी है अत: प्रत्येक दिशा में क्या होना चाहिए, यह जानना जरूरी है।

उत्तर दिशा : इस दिशा में घर के सबसे ज्यादा खिड़की और दरवाजे होना चाहिए। घर की बालकनी व वॉश बेसिन भी इसी दिशा में होना चाहिए। यदि घर का द्वार इस दिशा में है और अति उत्तम।

दक्षिण दिशा : दक्षिण दिशा में किसी भी प्रकार का खुलापन, शौचालय आदि नहीं होना चाहिए। घर में इस स्थान पर भारी सामान रखें। यदि इस दिशा में द्वार या खिड़की है तो घर में नकारात्मक ऊर्जा रहेगी और ऑक्सीजन का लेवल भी कम हो जाएग। इससे गृह कलह बढ़ने की आशंका रहती है।

पूर्व दिशा : पूर्व दिशा सूर्योदय की दिशा है। इस दिशा से सकारात्मक व ऊर्जावान किरणें हमारे घर में प्रवेश करती हैं। यदि घर का द्वार इस दिशा में है तो सबसे अच्छा है। खिड़की रख सकते हैं।

पश्चिम दिशा : आपका रसोईघर या टॉयलेट के लिए यह दिशा अच्छी मानी जाती है। वास्तु की दृष्टि से और सफाई की दृष्टि से भी रसोई-घर और टॉयलेट पास-पास न हो।

उत्तर-पूर्व दिशा : इसे ईशान दिशा भी कहते हैं। इसे जल की दिशा कहा जाता है। इस दिशा में बोरिंग, स्वीमिंग पूल, पूजास्थल अच्छे माने जाते हैं। इस दिशा में घर का दरवाजा हो तो सबसे अच्छा।

उत्तर-पश्चिम दिशा : इसे वायव्य दिशा भी कहते हैं। इस दिशा में आपका बेडरूम, गैरेज, गौशाला का होना अच्छा माना जाता है।

दक्षिण-पूर्व दिशा : यह आग्नेय कोण हैं। यह अग्नि तत्व की दिशा है। इस दिशा में गैस, बॉयलर, ट्रांसफॉर्मर के लिए बेहतर होती है।

दक्षिण-पश्चिम दिशा : इस दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा में खिड़की, दरवाजे बिलकुल ही नहीं होना चाहिए। घर के मुखिया का कमरा यहां बना सकते हैं। कैश काउंटर, मशीनें आदि आप इस दिशा में रख सकते हैं।

घर का आंगन : घर में आंगन नहीं है तो घर अध्ाूरा है। घर के आगे और घर के पीछे छोटा ही सही, पर आंगन होना चाहिए। इसके पीछे का दर्शन यह है कि बच्चों के लिए खुलापन मिले। आपके अपने लिए भी फैली ध्ाूप और खुली हवा के लिए कोई कोना हो। पेड़-पौधों के लिए भी जगह हो तो और भी अच्छा।

पूजाघर : घर में पूजा के कमरे का स्थान सबसे अहम होता है। इस स्थान से ही हमारे मन और मस्तिष्क में शांति मिलती है तो यह स्थान अच्छा होना जरूरी है। आपकी आय काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि घर में पूजाघर कहां है। घर के बाहर एक अलग स्थान देवता के लिए रखा जाता था जिसे परिवार का मंदिर कहते थे। बदलते दौर के साथ एकल परिवार का चलन बढ़ा है इसलिए पूजा का कमरा घर के भीतर ही बनाया जाने लगा है।

वास्तु के अनुसार भगवान के लिए उत्तर-पूर्व की दिशा श्रेष्ठ रहती है। इस दिशा में पूजाघर स्थापित करें। यदि पूजाघर किसी ओर दिशा में हो तो पानी पीते समय मुंह ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रखें। पूजाघर के ऊपर या नीचे की मंजिल पर शौचालय या रसोईघर नहीं होना चाहिए, न ही इनसे सटा हुआ। सीढ़ियों के नीचे पूजा का कमरा बिलकुल नहीं बनवाना चाहिए। यह हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर होना चाहिए, तहखाने में नहीं।

शयन कक्ष: शयन कक्ष अर्थात बेडरूम हमारे निवास स्थान की सबसे महत्वपूर्ण जगह है। इसका सुकून और शांतिभरा होना जरूरी है। कई बार शयन कक्ष में सभी तरह की सुविध्ााएं होने के कारण भी चैन की नींद नहीं आती। कोई टेंशन नहीं है फिर भी चैन की नींद नहीं आती तो इसका कारण शयन कक्ष का गलत स्थान पर निर्माण होना है।

मुख्य शयन कक्ष, जिसे मास्टर बेडरूम भी कहा जाता हें, घर के दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य) या उत्तर-पश्चिम (वायव्य) की ओर होना चाहिए। अगर घर में एक मकान की ऊपरी मंजिल है तो मास्टर ऊपरी मंजिल मंजिल के दक्षिण-पश्चिम कोने में होना चाहिए।

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शयन कक्ष में सोते समय हमेशा सिर दीवार से सटाकर सोना चाहिए। पैर दक्षिण और पूर्व दिशा में करने नहीं सोना चाहिए। उत्तर दिशा की ओर पैर करके सोने से स्वास्थ्य लाभ तथा आर्थिक लाभ की संभावना रहती है। पश्चिम दिशा की ओर पैर करके सोने से शरीर की थकान निकलती है, नींद अच्छी आती है।

विशेष :

* नल से यदि पानी टपक रहा है तो उसके बंद करने की व्यवस्था तुरंत करें।

* जिनके घर में जल की निकासी दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में नहीं होनी चाहिए।

* उत्तर एवं पूर्व दिशा में जल की निकासी को शुभ माना गया है।

* जल संग्रहण का स्थान ईशान कोण को बनाएं।

* बिस्तर के सामने आईना कतई न लगाएं।

* शयन कक्ष के दरवाजे के सामने पलंग न लगाएं।

* सोने के कमरे में धार्मिक चित्र न लगाएं।

* पलंग का आकार चोकोर ही रखें।

* सोते हुए नीले रंग की रोशनी का प्रयोग करें।

वर्ष 2018 में बना रहे हैं घर, तो ये जानना है बेहद जरूरी – varsh 2018 mein bana rahe hain ghar, to yeh jaana hai behad jaruri – वास्तु शास्त्र टिप्स – vastu shastra tips

 

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