kahaan hona chaahie mukhy daravaaja

कहां होना चाहिए मुख्य दरवाजा – वैदिक वास्तु शास्त्र – kahaan hona chaahie mukhy daravaaja – vedic vastu shastra

किसी भी भवन का उपयोग करने के लिए उसमें द्वार रखना आवश्यक होता है! वास्तुनुकूल स्थान पर लगा द्वार उस भवन में रहने वालों के जीवन में सुख-समृद्धि एवं सरलता लाता है और इसके विपरीत गलत स्थान पर लगा द्वार जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा कर दुख पहुंचाता है!
इसलिए वास्तुशास्त्र में द्वार का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है! किसी भी भवन में कहां पर दरवाजा रखना शुभ होगा और कहां रखना अशुभ होगा? कितने दरवाजे रख सकते हैं? इस बारे में वास्तुशास्त्र के पुराने ग्रंथों जैसे वशिष्ठ संहिता, वास्तु प्रदीप, विश्वकर्मा आदि में विस्तृत जानकारी दी गई है!

मुख्य प्रवेश द्वार ऐसा होना चाहिए कि इसकी उंचाई, द्वार की चैड़ाई से दुगुनी हो! ऐसा द्वार ‘‘मुख्य आदर्श प्रवेश द्वार’’ कहलाता है! यदि संभव हो तो मुख्य द्वार की चैड़ाई 4 फीट से कम न रखें तथा ऊंचाई 8 फीट शुभ रहेगी! बहुत छोटे या संकरे प्रवेश द्वार हों तो परिवार के सदस्यों में मानसिक तनाव देता है! दरवाजा खोलते या बंद करते समय किसी भी दरवाजे का आवाज करना अशुभ रहता है! घर के सभी द्वार दो पल्ले (कपाट) वाले हां! यदि सभी द्वार ऐसे न बनाये जा सकें तो कम से कम मुख्य प्रवेश द्वार, पूजन व मुख्य शयन कक्ष के द्वार अवश्य दो पल्ले वाले होना शुभ है! मंदिर होने से गृहस्वामी का अनिष्ट और बालकों को दुख होता है!

द्वार की आकृति:

मुख्य प्रवेश द्वार व अन्य द्वार को सदैव ‘‘आयताकार’’ रखना ही शुभ होता है! अन्य द्वारों में तिकोना या त्रिकोणात्मक द्वार नारी को पीड़ा, शकटाकार द्वार स्वामी को भय दने वाल, सर्यू क समान द्वार-धन नाशक, धनुषाकार द्वार- कलहकारी नया चर्तुल या वृत्ताकार द्वार अधिक कन्याओं को जन्म देने वाले होते हैं आदि! मुख्य प्रवेश द्वार बाहर की अपेक्षा अंदर खुलना चाहिए, नहीं तो रोग व अस्वस्थता बढ़ जाती है! यदि किवाड़ के जोड़ गडबड़ हां तो गृहस्वामी कई कष्ट झेलता है! पारिवारिक शांति भी भंग हो जाता है! मुख्य प्रवेश द्वार बहुत बड़ा और बहुत ही संकरा/छोटा अशुभ होता है! इसका आकार घर के अनुपात में ही हाने चाहिय जसै कि ऊपर बताया गया है! तुलना में बड़ा द्वार परिवार में मतभेद बढ़ाता है तथा इससे ‘‘ची’’ ऊर्जा भी सीमित होती है! 4- मुख्य प्रवेश द्वार, यदि पीछे का द्वार है, ता इसस आकार म कुछ बडा़ हाने चाहिए अर्थात् पीछे द्वार छोटा होना चाहिये! इससे ‘ची’ ऊर्जा आसानी से घर में प्रवेश कर सके और कुछ देर ठहरे, उसके बाद ही बाहर जाये!
मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर स्वास्तिक या रंगोली या छोटे-छोटे पौधे गमले में लगाना शुभ रहता है! कांटे वाले पाध् जसै नागफनी, गलुब, ककै टस् व दध् निकलन वाल आदि तथा बौनसाई तथा बेल आदि पौधे न लगायें! स्वास्तिक में अलग गणेश मूर्ति या अन्य शुभ संकेत चिह्न लगाना शुभ रहता है! इससे घर, बुरी नजरों से बचा रहता है! इसके लिये पाकुआ दर्पण का भी उपयोग कर सकते हैं!
चूंकि मुख्यप्रवेश द्वार घर का आयना होता है! अतः उसे आकर्षक बनाने के लिये अपनी सृजनात्मक क्षमता का उपयोग करना चाहिए! मुख्य द्वार क पास तुलसी का पौधा वास्तुअनुसार शुभ, उत्तम रहता है! मुख्य द्वार हमेशा चैखट वाला होना चाहिये! आज के वर्तमान दौर में अधिकतर घरों में चैखट की बजाय तीन साइड वाला डोर फ्रेम लगाया जा रहा है! जो कि वास्तुअनुसार शुभ नहीं है! इस वास्तुदोष को दूर करने के लिये लकड़ी की पतली पट्टी या वुडन फ्लोरिंग में इस्तेमाल होने वाली पतली सी वुडन टाइल को मुख्य द्वार पर फर्श क साथ चिपका दने स उपाय हो जाता है! यदि घर का मुख्य, प्रवेश मार्ग, द्वार से छोटा व संकरा है तो यह वास्तुदोष वाली अशुभ स्थिति है! इससे भाग्य व धन में कमी रहेगी!

कहां होना चाहिए मुख्य दरवाजा – kahaan hona chaahie mukhy daravaaja – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra

 

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