वास्तुशास्त्र के नियमानुसार कृषि योग्य भूमि के दक्षिण पश्चिम में भारी ऊंची वनस्पति, दक्षिण पूर्व में छोटी वनस्पति एवं उत्तर-पूर्व में सबसे छोटी वनस्पति लगानी चाहिए! बांस, बेंत, जलने वाली वनस्पति दक्षिण पूर्व में व केले, धान जलीय भूमि में लगाने चाहिए!
कृषि में सिंचाई हेतु नलकूप उत्तर-पूर्व में लगवाएं और लोहे के पाइप न लगवाकर प्लास्टिक के पाईप लगवाएं! बिजली के बोर्ड आदि दक्षिण पूर्व में लगवाएं! कृषि फार्म की जुलाई उत्तर-पूर्व से शुरू करें और दक्षिण पश्चिम में समाप्त करें! रोपण कार्य भी इसी प्रकार करें! फसल की देखभाल के लिए वाॅच टावर दक्षिण पश्चिम में लगवाएं! टैªक्टर, हल, लोहे के यंत्र आदि दक्षिण पश्चिम में रखें! फसल काटकर दक्षिण पूर्व में रखें! पशुओं के रहने का घर उत्तर-पश्चिम में बनवाएं! पशुओं की खाने की नांद उत्तर-पश्चिमी दीवार पर बनवाएं! कृषि के लिए समतल भूमि होनी चाहिए! कृषि भूमि की ढलान पूर्व या उत्तर की ओर रखें! कृषि फार्म आयताकार या वर्गाकार होना चाहिए! उत्तर की ओर कटीली तार की फंेसिंग रखें तथा दक्षिण पश्चिम में दीवार लगवाएं! नई फसल की बुआई मंगल तथा शनिवार के दिन प्रारंभ नहीं करनी चाहिए!
फसल की बुआई बांई से दांयी दिशा में और कटाई बांई से दांयी दिशा में होनी चाहिए! बेचने वाले अनाज उत्तर- पश्चिम में या पूर्व की ओर वाले दरवाजे से बाहर जाएं तो शुभ होता है! खेती में लगने वाली कम्पोस्ट खाद दक्षिण में बनाएं तथा रसायनिक खाद खेत के पश्चिम में रखें! अनाज की ढुलाई करने वाले वाहन, ट्रक, ट्रैक्टर आदि उŸार या पूर्व दिशा की ओर खड़े करने चाहिए! फूलों की खेती के लिए पूर्व दिशा की ओर लाल, गुलाबी,उत्तर दिशा की ओर सफेद और पीले, दक्षिण दिशा की ओर नीले, पश्चिमी दिशा की ओर पीले, जामुनी फूल लगाने चाहिए! खेत के बीच में कोई टीला या ऊंचा स्थान न बनाएं! खेत में पूर्व और उत्तर दिशा के अतिरिक्त कहीं भी गडढे न रखें! दक्षिण पश्चिम दिशा के अतिरिक्त कहीं भी मिट्टी ऊंची न रखें! खेत के बीचों बीच उत्तर- पूर्व मेें आग नहीं जलानी चाहिए! खेत में कार्य करते समय उत्तर -पूर्व की ओर अपना मुंह रखना चाहिए! कृषि फार्म में मंदिर न बनाएं! अगर है तो उसमें प्रतिदिन पूजा करें!
वास्तु एवं कृषि – vastu evam krishi – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra