गुण मिलान से अधिक महत्वपूर्ण है वर एवं वधु की कुंडली का पंचम भाव (पंचमेश) सप्तम भाव (सप्तमेश), नवम भाग (भाग्यदेश) एवं एकादश भाव (लाभेश) की विशेष रूप से जांच करना। पंचमेश भाव में से विद्या, पद, उन्नति एवं संतान के बारे में पता लगाया जा सकता है। वर तथा कन्या की वृद्धि का स्तर लगभग समान होना चाहिए। धार्मिक प्रवृति का विश्लेषण भी सफल विवाह के लिए आवश्यक होता है।
